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संसार में कोई सबसे बड़ा धर्म है तो वह है मानवता का धर्म। जिन इंसान के अंदर मानवता है वह सब धर्मों में श्रेष्ठ है। मानवता कभी भी किसी कि जाति या धर्म नहीं देखता बल्कि निःस्वार्थ भाव से हर मानव की सेवा करना ही अपना धर्म समझता है। ऐसा ही कुछ संदेश दे रही है यह “ मानवता पर कहानी
नागार्जुन प्राचीन समय में एक महान रसायनशास्त्री हुए हैं। उन्होंने ने दिन-रात काम कर के कई असाध्य रोगों की दवा बनाई। काम इतना बढ़ गया कि उन्हें अब एक सहायक की आवश्यकता महसूस हुई। उन्होंने राजा से विनती की कि काम बढ़ जाने के कारन अब उन्हें एक सहायक की आवश्यकता है। राजा ने उन्हें कहा कि अगली सुबह वह दो नौजवानों को भेज देंगे। उनमे से जो ज्यादा योग्य हो उसे वे अपना सहायक बना लें।
अगली सुबह नागार्जुन के पास दो नौजवान आये। दोनों ने बराबर ही शिक्षा प्राप्त की हुई थी। दोनों की योग्यता भी एक जैसी ही थी। लेकिन नागार्जुन को तो बस एक ही सहायक चाहिए था। यह देख नागार्जुन सोच में पड़ गए कि वे किसे अपना सहायक बनायें और किसे नहीं। कुछ देर सोचकर उन्होंने दोनों को एक पदार्थ दिया और कहा,
“ये कौन सा पदार्थ है इस बारे में आपको खुद ही जानकरी प्राप्त करनी है और एक रसायन बना कर लाना है। रसायन देखने के बाद मैं यह निर्णय लूँगा कि कौन मेरा साहयक बनेगा।”
दोनों नौजवान नागार्जुन को नमस्कार करने के बाद चलने ही वाले थे कि नागार्जुन ने कहा,
“जाते समय राजमार्ग से होते हुए जाना।”
नागार्जुन ने ऐसा क्यों कहा यह तो दोनों को नहीं पता लगा। फिर भी दोनों चले गए।
कुछ दिन बीते, दोनों फिर एक साथ नागार्जुन के पास पहुंचे। राजा भी नागार्जुन के साथ ही थे। उन नौजवानों में से एक उत्साहित और प्रसन्न नजर आ रहा था वहीं दूसरा उदास था।
नागार्जुन ने जब रसायन दिखने को कहा तो पहले नौजवान ने अपना रसायन दिखाया। उसके गुण-दोष बताये। नागार्जुन उस नौजवान से प्रभावित हुए। सब कुछ पूछ लेने के बाद नागार्जुन ने दुसरे नौजवान से अपना रसायन दिखने को कहा। इस पर उस नौजवान ने बताया कि वह रसायन तैयार नहीं कर सका। नागार्जुन ने जब कारन पूछा तो उसने बताया,
“आपके कहे, अनुसार मैं राजमार्ग से जा रहा था। वहां पर मैने एक बीमार व्यक्ति को देखा। जिसकी हालत बहुत ख़राब थी। कोई भी उस व्यक्ति की सहायता नहीं कर रहा था। मुझे उस व्यक्ति पर तरस आ गया। फिर मैं उसे अपने साथ ले गया। उसकी देखभाल की। ये सब करते हुए मुझे इस पदार्थ से रसायन बनाने का समय ही नहीं मिला।”
ये सब सुनने के बाद नागार्जुन ने कहा,
“ठीक है कल से तुम मेरे साथ काम करोगे। मैं तुम्हें अपना सहायक नियुक्त करता हूँ।”
यह सुन राजा तुरंत बोले,
“लेकिन नागार्जुन इस नौजवान ने तो रसायन बनाया ही नहीं। तो फिर तुम इसे अपना सहायक क्यों नियुक्त कर रहे हो।”
इस पर नागार्जुन ने उत्तर दिया,
“महाराज मुझे पहले से इस बात का बोध था कि राजमार्ग पर एक बीमार व्यक्ति है। इसीलिए मैंने दोनों को राजमार्ग से होकर जाने के लिए कहा था। पहले नौजवान ने उस पर ध्यान नहीं दिया जबकि दूसरे नौजवान ने निःस्वार्थ भाव से उसकी सेवा की और मानवता धर्म निभाया। ऐसे रसायन का क्या लाभ जो किसी के प्राण न बचा सके। चिकित्सा करने के लिए मानव बनना बहुत आवश्यक है। जिस व्यक्ति में मानवता नहीं है वह किसी की चिकित्सा कैसे करेगा? इसीलिए मैंने दूसरे नौजवान को अपना सहायक नियुक्त किया।”
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