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कहाँ है ईश्वर??
तुम माँ के पेट में थे नौ महीने तक, कोई दुकान तो चलाते नहीं थे,
फिर भी जिए।
हाथ पैर भी न थे कि भोजन कर लो, फिर भी जिए।
श्वास लेने का भी उपाय न था, फिर भी जिए।
नौ महीने माँ के पेट में तुम थे, कैसे जिए?
तुम्हारी मर्जी क्या थी?
किसकी मर्जी से जिए?
फिर माँ के गर्भ से जन्म हुआ, जन्मते ही, जन्म के पहले ही माँ के स्तनों में दूध भर आया, किसकी मर्जी से? अभी दूध को पीनेवाला
आने ही वाला है कि दूध तैयार है,
किसकी मर्जी से?
गर्भ से बाहर होते ही तुमने कभी इसके पहले
साँस नहीं ली थी माँ के पेट में तो माँ की साँस से ही काम चलता था
लेकिन जैसे ही तुम्हें माँ से बाहर होने का अवसर आया, तत्क्षण तुमने साँस ली,
किसने सिखाया?
पहले कभी साँस ली नहीं थी, किसी पाठशाला में गए नहीं थे,
किसने सिखाया कैसे साँस लो?
किसकी मर्जी से?
फिर कौन पचाता है तुम्हारे दूध को जो तुम पीते हो, और तुम्हारे भोजन को? कौन उसे हड्डी, मांस, मज्जा में बदलता है?
किसने तुम्हें जीवन की सारी प्रक्रियाएँ दी हैं?
कौन जब तुम थक जाते हो तुम्हें सुला देता है?
और कौन जब तुम्हारी नींद पूरी हो जाती है
तुम्हें उठा देता है?
कौन चलाता है इन चाँद, सूर्यों को? कौन इन वृक्षों को हरा रखता है?
कौन खिलाता है फूल अनंत अनंत रंगों के और गंधों के?
इतने विराट का आयोजन जिस स्रोत से चल रहा है,
एक तुम्हारी छोटी सी जिंदगी उसके सहारे न चल सकेगी?
थोड़ा सोचो,
थोड़ा ध्यान करो।
अगर इस विराट के आयोजन को तुम चलते हुए देख रहे हो,
कहीं तो कोई व्यवधान नहीं है, सब सुंदर चल रहा है,
सुंदरतम चल रहा है;
ईश्वर दिखता नही बल्कि दिखाता है ईश्वर सुनता नही बल्कि सुनने की शक्ति देता है
संसार में कोई भी वस्तु बिना बनाये नही बनती अतः संसार भी किसी ने अवश्य बनाया है
यही तो ईश्वर है।

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