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क्या गंगा में नहाने से धुलते हैं पाप!

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माता
पार्वती ने भगवान शिव से पूछा : क्या गंगा में नहाने से धुलते हैं पाप!!!!

एक समय शिव जी महाराज पार्वती के साथ हरिद्वार में घूम रहे थे। पार्वती जी ने देखा कि सहस्त्रों मनुष्य

गंगा में नहा-नहाकरहर-हरकहते चले जा रहे हैं परंतु प्राय: सभी दुखी और पाप परायण हैं।

पार्वती जी ने बड़े आश्चर्य से शिव जी से पूछा किहे देव ! गंगा में इतनी बार स्नान करने पर भी इनके पाप

और दुखों का नाश क्यों नहीं हुआ?

क्या गंगा में सामर्थ्य नहीं रहा?’

शिवजी ने कहा 'प्रिये! गंगा में तो वही सामर्थ्य है, परंतु इन लोगों ने पापनाशिनी गंगा में स्नान ही नहीं किया है

तब इन्हें लाभ कैसे हो?’’

पार्वती जी ने आश्चर्य से कहा कि''स्नान कैसे नहीं किया? सभी तो नहा-नहा कर रहे हैं? अभी तक इनके

शरीर भी नहीं सूखे हैं।'

शिवजी ने कहा,'ये केवल जल में डुबकी लगाकर रहे हैं। तुम्हें कल इसका रहस्य समझाऊंगा।

शिवजी ने लीला से ही वृद्ध रूप धारण कर लिया और दीन-विवश की तरह गड्ढे में जाकर ऐसे पड़ गए, जैसे कोई

मनुष्य चलता-चलता गड्ढे में गिर पड़ा हो और निकलने की चेष्टा करने पर भी निकल पा रहा हो।

पार्वती जी को उन्होंने यह समझाकर गड्ढे के पास बैठा दिया कि 'देखो, तुम लोगों को सुना-सुनाकर यूं पुकारती

रहो कि मेरे वृद्ध पति अकस्मात गड्ढे में गिर पड़े हैं कोई पुण्यात्मा इन्हें निकालकर इनके प्राण बचाए और

मुझ असहाय की सहायता करे।

शिवजी ने यह और समझा दिया कि जब कोई गड्ढे में से मुझे निकालने को तैयार हो तब इतना और कह देना कि

'भाई, मेरे पति सर्वथा निष्पाप हैं इन्हें वही छुए जो स्वयं निष्पाप हो यदि आप निष्पाप हैं तो इनके हाथ

लगाइए नहीं तो हाथ लगाते ही आप भस्म हो जाएंगे।'

स्वयं भस्म हो जाएं इसलिए किसी में साहस नहीं हुआ। सैंकड़ों आए, सैंकड़ों ने पूछा और चले गए। संध्या हो

चली। शिवजी ने कहा, 'पार्वती! देखा, आया कोई गंगा में नहाने वाला?'

एक युवक का हृदय करूणा से भर आया। उसने शिवजी को निकालने की तैयारी की। पार्वती ने रोक कर कहा कि

'भाई यदि तुम सर्वथा निष्पाप नहीं होओगे तो मेरे पति को छूते ही जल जाओगे।'

उसने बिना किसी संकोच के दृढ़ निश्चय के साथ पार्वती से कहा कि 'माता! मेरे निष्पाप होने में तुझे संदेह क्यों

होता है? देखती नहीं मैं अभी गंगा नहाकर आया हूं। भला, गंगा में गोता लगाने के बाद भी कभी पाप रहते हैं? तेरे

पति को निकालता हूं।'

इसी दृष्टांत के अनुसार जो लोग बिना श्रद्धा और विश्वास के केवल दंभ के लिए गंगा स्नान करते हैं उन्हें

वास्तविक फल नहीं मिलता परंतु इसका यह मतलब नहीं कि गंगा स्नान व्यर्थ जाता है। विश्वास के साथ किए

गए गंगा स्नान का मिलता है वास्तविक फल।

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