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प्राचीन काल में एक असुरराजा हुआ जिसका नाम था बलि। वह महान दानवीर और पराक्रमी शासक था। अपनी भक्ति और तपस्या के बल पर उसने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। उसकी शक्ति और दानशीलता से देवता भी भयभीत हो गए और स्वर्गलोक से वंचित हो गए।
तब देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की। श्रीहरि ने दैत्यराज बलि की परीक्षा लेने के लिए वामन अवतार धारण किया। वे एक छोटे से ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंचे। राजा बलि ने विनम्रता से उनका स्वागत किया और कहा,
"हे ब्राह्मण देवता, आज्ञा दीजिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?"
वामन रूपधारी विष्णु ने मुस्कुराकर कहा,
"मुझे केवल तीन पग भूमि चाहिए।"
राजा बलि उनकी विनम्रता से प्रभावित हुए और उन्होंने सहर्ष यह वरदान दे दिया। जैसे ही बलि ने संकल्प लिया, वामन भगवान ने अपना विराट रूप धारण कर लिया।
पहले पग में उन्होंने पूरी पृथ्वी को नाप लिया, दूसरे पग में स्वर्गलोक को। अब तीसरे पग के लिए कोई स्थान शेष न बचा। तब राजा बलि ने समझ लिया कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं हैं।
विनम्र होकर उन्होंने भगवान विष्णु के चरणों में सिर झुका दिया और कहा,
"हे प्रभु, अब तीसरा पग मेरे सिर पर रखिए।"
भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उनके सिर पर चरण रख दिया और कहा,
"राजा बलि, तुमने अपनी दानशीलता और भक्ति से मुझे प्रसन्न कर दिया है। मैं तुम्हें पाताल लोक का राजा बनाता हूँ। वहां तुम अपनी प्रजा के साथ रहोगे और धर्म की रक्षा करोगे।"
इस प्रकार भगवान विष्णु ने राजा बलि की परीक्षा ली और देवताओं को उनका अधिकार लौटाया। राजा बलि ने अपनी दानशीलता और सत्यनिष्ठा से अमरत्व प्राप्त किया।
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