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बाल कृष्ण ने माता यशोदा को ब्रह्मांड दर्शन कराया

 

बाल कृष्ण ने माता यशोदा को ब्रह्मांड दर्शन कराया

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मानवता के लिए दिव्य लीलाओं का एक अनमोल उपहार है। उनके बचपन के कई अद्भुत प्रसंगों में से एक है जब उन्होंने अपनी माँ यशोदा को अपने मुख में सम्पूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन कराए। यह घटना श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध में वर्णित है और भक्तों के लिए अत्यंत श्रद्धा और विस्मय का विषय बनी हुई है।


गोकुल में नटखट कृष्ण

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था, लेकिन कंस के भय से वसुदेव उन्हें रातोंरात गोकुल में नंद बाबा के घर छोड़ आए। वहाँ यशोदा और नंद बाबा ने उन्हें अपने पुत्र की तरह पाला। कृष्ण का बचपन गोकुल में बीता, जहाँ वे अपनी बाल लीलाओं से सभी को आनंदित करते थे। वे गोपियों की मटकी फोड़ते, ग्वाल-बालों के साथ खेलते और अपनी नटखट अदाओं से सबका मन मोह लेते।



माखन चोरी और गोपियों की शिकायत

कृष्ण की बाल लीलाओं में माखन चोरी का विशेष स्थान है। वे अपने सखाओं के साथ गोपियों के घरों में घुसकर माखन चुरा लिया करते थे। गोपियाँ जब यशोदा के पास उनकी शिकायत करने आतीं, तो यशोदा हंसकर रह जातीं, क्योंकि उन्हें अपने लाडले पर अटूट विश्वास था। लेकिन धीरे-धीरे कृष्ण की बाल लीलाएँ बढ़ने लगीं और एक दिन एक विशेष घटना घटी, जिसने सभी को चकित कर दिया।


माता यशोदा को ब्रह्मांड दर्शन

एक दिन गोपियों ने कृष्ण की शरारतों की शिकायत करते हुए कहा कि उन्होंने मिट्टी खा ली है। माता यशोदा को यह सुनकर चिंता हुई और उन्होंने कृष्ण को बुलाकर पूछा,
"कान्हा, क्या तुमने सच में मिट्टी खाई?"

बाल कृष्ण ने अपनी मोहक मुस्कान के साथ सिर हिलाकर इनकार कर दिया।
"मैंने मिट्टी नहीं खाई, माता!"

यशोदा को उनकी शरारतों का अंदाजा था, इसलिए वे मानने को तैयार नहीं थीं। उन्होंने कृष्ण से कहा,
"यदि तुमने मिट्टी नहीं खाई, तो अपना मुख खोलकर दिखाओ।"

कृष्ण ने बिना किसी झिझक के अपना मुख खोल दिया। लेकिन जब माता यशोदा ने उनके मुख के भीतर देखा, तो वे आश्चर्यचकित रह गईं।

उन्होंने देखा कि कृष्ण के छोटे-से मुख के अंदर समस्त ब्रह्मांड विद्यमान था। उन्होंने सूर्य, चंद्रमा, अनंत तारागण, नक्षत्र, पर्वत, नदियाँ, समुद्र और समस्त जीव-जंतुओं को स्पष्ट रूप से देखा। यही नहीं, उन्होंने स्वयं को भी कृष्ण के मुख में देखा—जैसे कोई दर्पण में अपना प्रतिबिंब देख रहा हो।

यशोदा को यह देखकर अपार विस्मय हुआ और उनका हृदय भक्ति से भर गया। वे यह समझ नहीं पा रही थीं कि यह सब वास्तविक है या कोई सपना।




माया का प्रभाव और यशोदा का मातृभाव

जब माता यशोदा कृष्ण के मुख में यह दिव्य दृश्य देख रही थीं, तब वे एक क्षण के लिए समझ गईं कि उनका पुत्र कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु का अवतार है। लेकिन तभी भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी योगमाया से यशोदा को पुनः अपने मातृभाव में लौटा दिया।

यशोदा तुरंत अपने पुत्र को गोद में उठाकर उनके सिर पर हाथ फेरने लगीं और सोचने लगीं कि यह सब केवल उनका भ्रम था। उनका हृदय प्रेम और वात्सल्य से भर गया और वे कृष्ण को हृदय से लगाकर पुनः अपने सामान्य जीवन में लौट आईं।


इस प्रसंग का आध्यात्मिक संदेश

यह घटना केवल एक चमत्कारी लीला नहीं, बल्कि एक गूढ़ आध्यात्मिक संदेश भी देती है।

  1. भगवान की महिमा अनंत है – भगवान श्रीकृष्ण केवल नटखट बालक नहीं, बल्कि स्वयं परम ब्रह्म हैं। वे संपूर्ण सृष्टि के स्वामी हैं, और उनका कण-कण में वास है।

  2. माया का प्रभाव – मनुष्य चाहे कितने भी दिव्य अनुभव करे, लेकिन भगवान की योगमाया उसे उनके वास्तविक स्वरूप को पूरी तरह समझने नहीं देती। यशोदा ने ब्रह्मांड के दर्शन तो किए, लेकिन अगले ही क्षण वे अपने मातृभाव में लौट आईं। इसी प्रकार, संसार में भी मनुष्य भगवान के चमत्कारों को देखता है, लेकिन माया के प्रभाव से उन्हें भूल जाता है।

  3. भक्ति और वात्सल्य – माता यशोदा का वात्सल्य भाव दिखाता है कि ईश्वर को प्रेम और भक्ति से वश में किया जा सकता है। भले ही वे संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी हों, लेकिन प्रेम के आगे वे स्वयं को एक साधारण बालक बना लेते हैं।

  4. परमात्मा सर्वव्यापी हैं – इस घटना से यह सिद्ध होता है कि भगवान हर स्थान पर विद्यमान हैं। उन्होंने अपने छोटे-से मुख में पूरा ब्रह्मांड प्रकट करके दिखा दिया कि वे सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी हैं।


श्रीकृष्ण की यह बाल लीला न केवल अद्भुत है, बल्कि भक्तों को यह समझने का अवसर देती है कि भगवान केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि इस समस्त सृष्टि में व्याप्त हैं। माता यशोदा के लिए कृष्ण उनका नटखट लाडला था, लेकिन वे वास्तव में संपूर्ण ब्रह्मांड के नियंता हैं।

यह प्रसंग हमें यह भी सिखाता है कि भगवान की लीला को समझना केवल तर्क से संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए प्रेम और भक्ति का भाव आवश्यक है। जो भी श्रीकृष्ण की इन लीलाओं को श्रद्धा से सुनता और स्मरण करता है, वह निश्चित रूप से उनके दिव्य प्रेम का अनुभव करता है और जीवन में आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करता है।

जय श्रीकृष्ण!


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