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बच्चों, क्या तुमने कभी सोचा है कि इस दुनिया में तुम्हारा सबसे बड़ा हितैषी कौन है? वह कौन है जो तुम्हारे हर सुख-दुख में तुम्हारे साथ खड़ा रहता है, जो तुम्हारी हर छोटी-बड़ी जरूरत का ख्याल रखता है, और जो तुम्हारे भविष्य को लेकर हमेशा चिंतित रहता है? वह हैं तुम्हारे माता-पिता। माता-पिता न केवल तुम्हारे जीवन के पहले गुरु हैं, बल्कि वे तुम्हारे सच्चे शुभचिंतक भी हैं। उनकी हर सलाह, हर डांट, और हर फैसला तुम्हारे भले के लिए होता है, भले ही तुम्हें वह उस समय समझ में न आए।
बचपन में जब हमें खेलने का मन होता है
और मम्मी-पापा पढ़ाई करने को कहते हैं,
तो हमें गुस्सा आता है। जब वे हमें
मोबाइल या टीवी कम देखने की सलाह देते हैं,
तो हमें लगता है कि वे हमें खुश नहीं
देखना चाहते। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि वे ऐसा क्यों कहते हैं? इसका कारण बहुत सीधा
और सच्चा है — वे हमें जीवन में सफल,
सुरक्षित और खुश देखना चाहते हैं।
माता-पिता का प्यार: एक अनमोल रिश्ता
माता-पिता का प्यार इस दुनिया का सबसे
निस्वार्थ और शुद्ध प्यार है। जब तुम इस दुनिया में आए, तो तुम्हारी पहली
मुस्कान, तुम्हारा
पहला कदम, और
तुम्हारी पहली बात को देखकर सबसे ज्यादा खुशी किसे हुई? तुम्हारे माता-पिता
को। उन्होंने तुम्हें अपने दिल में बसाया और तुम्हारे लिए अपने सपनों को भी कई बार
पीछे छोड़ दिया। माँ की गोद में तुमने सुकून पाया,
और पिता की उंगली पकड़कर तुमने चलना
सीखा। यह प्यार ऐसा है जो बिना किसी शर्त के तुम्हें मिलता है।
माता-पिता हमारे पहले शिक्षक होते हैं।
जब हम छोटे होते हैं और दुनिया की समझ नहीं होती,
तब वे ही हमें सही-गलत की पहचान सिखाते
हैं। वे जानते हैं कि कौन-सी चीज़ हमारे लिए सही है और कौन-सी गलत। जब वे किसी
दोस्त के साथ ज़्यादा न मिलने की सलाह देते हैं या देर रात बाहर जाने से रोकते हैं, तो वो हमारी आज़ादी
को नहीं, बल्कि
हमारी सुरक्षा को महत्व दे रहे होते हैं।
बच्चों,
क्या तुमने कभी गौर किया कि जब तुम
बीमार पड़ते हो, तो
तुम्हारी माँ रात-रात भर जागकर तुम्हारा ख्याल रखती है? या जब तुम्हें स्कूल
के लिए तैयार होना होता है, तो
तुम्हारे पिता सुबह जल्दी उठकर तुम्हारे लिए टिफिन तैयार करते हैं या तुम्हें
स्कूल छोड़ने जाते हैं? ये
छोटी-छोटी बातें उनके प्यार और जिम्मेदारी का प्रतीक हैं। वे तुम्हारे लिए हर वह
काम करते हैं, जो
तुम्हें खुश और सुरक्षित रखे।
माता-पिता की डांट: प्यार का एक रूप
बच्चों,
क्या तुम्हें कभी ऐसा लगा कि माता-पिता
की डांट बेकार है? या
कि वे तुम्हें समझते ही नहीं? यह सोचना स्वाभाविक है,
क्योंकि तुम अभी छोटे हो और दुनिया को
पूरी तरह समझ नहीं पाए हो। लेकिन सच यह है कि माता-पिता की हर डांट के पीछे
तुम्हारा भला छिपा होता है। उनकी डांट का मतलब यह नहीं कि वे तुमसे प्यार नहीं
करते, बल्कि
यह दिखाता है कि वे तुम्हें सही रास्ते पर ले जाना चाहते हैं।
उदाहरण के लिए, जब तुम देर रात तक
टीवी देखते हो और माँ तुम्हें डांटती है कि "जल्दी सो जाओ, नहीं तो सुबह स्कूल
के लिए उठना मुश्किल होगा," तो
वह तुम्हारी सेहत और पढ़ाई की चिंता कर रही होती है। या जब पिता तुम्हें कहते हैं
कि "अपना होमवर्क पहले पूरा करो,
फिर खेलने जाओ," तो वे तुम्हें
अनुशासन और समय के महत्व को सिखाना चाहते हैं।
नैतिक सबक
माता-पिता की डांट को गलत न समझो। उनकी
हर बात में एक सबक छिपा होता है। वे तुम्हें इसलिए डांटते हैं, क्योंकि वे नहीं
चाहते कि तुम गलत रास्ते पर जाओ। उनकी डांट तुम्हें जिम्मेदार, मेहनती और अच्छा
इंसान बनने में मदद करती है।
कई बार बच्चे अपने माता-पिता से तुलना
करने लगते हैं — "मेरे दोस्त के पापा ने उसे नया मोबाइल दिलाया, तो आप क्यों नहीं
देते?" लेकिन
जो माता-पिता कुछ समय के लिए किसी चीज़ से मना करते हैं, वे ही भविष्य में
आपको ज़्यादा सुरक्षित और खुशहाल जीवन देने की कोशिश कर रहे होते हैं। उन्हें
हमारी ज़रूरतों का अंदाज़ा हमसे बेहतर होता है,
बस वे जल्दबाज़ी की बजाय सोच-समझकर
फैसला करते हैं।
समय बीतता है, हम बड़े हो जाते हैं।
पढ़ाई, करियर, दोस्त, मोबाइल और दुनिया की
रफ्तार में माता-पिता हमें पुराने लगने लगते हैं। कभी-कभी हम उनकी बातों को अनसुना
कर देते हैं, जवाब
दे देते हैं, चिढ़
जाते हैं। पर जब वही माता-पिता एक दिन किसी कारणवश दूर हो जाते हैं — पढ़ाई के लिए, नौकरी के लिए या जीवन
की किसी सच्चाई के कारण — तब हमें उनकी बातों की अहमियत समझ आती है। उस समय उनका
प्यार, उनकी
देखभाल और उनकी उपस्थिति की कमी बहुत खलती है।
माता-पिता के फैसले: हमेशा हमारे भले के लिए
कभी-कभी माता-पिता ऐसे फैसले लेते हैं
जो तुम्हें पसंद नहीं आते। जैसे कि तुम्हें किसी दोस्त के घर रात में रुकने की
इजाजत न देना, या
तुम्हें ज्यादा मोबाइल फोन इस्तेमाल करने से रोकना। लेकिन क्या तुमने कभी सोचा कि
वे ऐसा क्यों करते हैं? माता-पिता
के पास अनुभव का खजाना
माता-पिता का अनुभव
माता-पिता ने अपने जीवन में कई
उतार-चढ़ाव देखे हैं। वे जानते हैं कि दुनिया में अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोग
हैं। वे तुम्हें ऐसी जगहों या परिस्थितियों से दूर रखना चाहते हैं, जो तुम्हारे लिए
हानिकारक हो सकती हैं। उनके फैसले तुम्हें उस समय सख्त लग सकते हैं, लेकिन वे हमेशा
तुम्हारे भविष्य को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं।
माता-पिता का त्याग: एक अनदेखा बलिदान
क्या तुमने कभी सोचा कि तुम्हारे
माता-पिता तुम्हारे लिए कितना त्याग करते हैं?
वे अपनी इच्छाओं को दबाकर तुम्हारी
जरूरतों को पूरा करते हैं। तुम्हारी स्कूल फीस,
तुम्हारे खिलौने, तुम्हारे कपड़े, और तुम्हारी हर
छोटी-बड़ी खुशी के लिए वे दिन-रात मेहनत करते हैं। कई बार वे अपनी पसंद की चीजें
अंकित की साइकिल: एक पिता के त्याग की कहानी
अंकित एक 12 साल का नटखट और
हंसमुख बच्चा था, जो
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में रहता था। उसका घर एक साधारण सा मकान था, जिसमें एक छोटा सा
आँगन, दो
कमरे और एक रसोई थी। अंकित के पिता,
रमेश,
एक छोटे से सरकारी दफ्तर में क्लर्क की
नौकरी करते थे। उनकी तनख्वाह ज्यादा नहीं थी,
लेकिन वे अपने परिवार की हर छोटी-बड़ी
जरूरत को पूरा करने की पूरी कोशिश करते थे। अंकित की माँ, सावित्री, एक गृहिणी थीं, जो घर को प्यार और
मेहनत से चलाती थीं। अंकित उनका इकलौता बेटा था,
और उनके लिए वह उनकी दुनिया का केंद्र
था।
अंकित को साइकिल चलाने का बहुत शौक था।
वह अपने दोस्तों को देखता, जो
स्कूल से घर तक अपनी चमचमाती साइकिलों पर हँसते-खेलते जाते थे। उसकी आँखों में भी
एक सपना था—एक नई साइकिल, जो
न केवल उसे स्कूल ले जाए, बल्कि
उसे अपने दोस्तों के साथ गलियों में मस्ती करने का मौका भी दे। उसकी पुरानी साइकिल
अब जर्जर हो चुकी थी। उसका हैंडल टेढ़ा हो गया था,
और चेन बार-बार उतर जाया करती थी। हर
बार जब वह अपनी साइकिल चलाता, तो दोस्त उसका मजाक उड़ाते। "अंकित, ये क्या, तेरी साइकिल तो
दादाजी के जमाने की है!" वे हँसते हुए कहते। अंकित बस मुस्कुरा देता, लेकिन अंदर ही अंदर
वह चाहता था कि काश, उसके
पास भी एक नई साइकिल होती।
एक शाम,
जब अंकित स्कूल से घर लौटा, उसने अपनी माँ से
अपनी दिल की बात कही। "माँ, मेरी साइकिल अब बिल्कुल खराब हो गई है। स्कूल जाने में बहुत
दिक्कत होती है। क्या मुझे नई साइकिल मिल सकती है?"
सावित्री ने अपने बेटे की तरफ देखा और
प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। "बेटा,
मैं तुम्हारे पापा से बात करूँगी। देखते
हैं, क्या
हो सकता है।" अंकित का चेहरा खिल उठा। उसे यकीन था कि उसके पापा उसकी बात
जरूर मानेंगे।
उसी रात,
खाना खाने के बाद, सावित्री ने रमेश से
अंकित की बात छेड़ी। "रमेश जी,
अंकित की साइकिल बहुत पुरानी हो गई है।
बच्चा स्कूल जाने में परेशान होता है। वह एक नई साइकिल चाहता है।" रमेश ने
चुपचाप अपनी थाली की तरफ देखा। उनकी आँखों में एक गहरी चिंता थी। वे जानते थे कि
घर का खर्च चलाना पहले ही मुश्किल था। रमेश की तनख्वाह से घर का किराया, बिजली का बिल, राशन, और अंकित की स्कूल
फीस निकालने के बाद कुछ खास बचता नहीं था। फिर भी,
उन्होंने अपनी पत्नी की तरफ देखकर हल्के
से मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक
है, सावित्री।
मैं कुछ सोचता हूँ।"
रमेश के मन में उथल-पुथल मची थी। वे
जानते थे कि अंकित की खुशी उनके लिए सबसे ज्यादा मायने रखती है। लेकिन एक नई
साइकिल खरीदना उनके लिए आसान नहीं था। उनकी जेब में पैसे कम थे, और अगले महीने अंकित
की स्कूल फीस भी जमा करनी थी। फिर भी,
रमेश ने ठान लिया कि वे अपने बेटे का
सपना पूरा करेंगे।
रमेश को अपने लिए एक नया जूता खरीदना
था। उनके पुराने जूते अब फट चुके थे,
और दफ्तर में उनके सहकर्मी अक्सर मजाक
उड़ाते थे। लेकिन रमेश ने फैसला किया कि वे अपने जूते खरीदने का इरादा टाल देंगे।
इसके अलावा, उन्होंने
अपनी कुछ और जरूरतों को भी अनदेखा करने का फैसला किया। वे हर महीने थोड़ा-सा पैसा
बचाकर एक तरफ रखते थे, ताकि
किसी आपात स्थिति के लिए तैयार रहें। लेकिन इस बार,
उन्होंने उस बचत का इस्तेमाल करने का मन
बना लिया।
अगले कुछ हफ्तों तक, रमेश ने और भी मेहनत
की। वे दफ्तर में ओवरटाइम करने लगे,
ताकि थोड़ा अतिरिक्त पैसा कमा सकें।
सावित्री ने भी घर के खर्चों में कटौती करने की कोशिश की। उन्होंने बाजार से सस्ता
राशन खरीदा और अपनी कुछ छोटी-मोटी इच्छाओं को दबा दिया। दोनों ने मिलकर एक ही
लक्ष्य बनाया—अंकित के लिए साइकिल।
एक दिन,
जब अंकित स्कूल से घर लौटा, तो उसने देखा कि आँगन
में एक चमचमाती नीली साइकिल खड़ी थी। उसकी आँखें चमक उठीं। "ये... ये
साइकिल!" वह चिल्लाया और दौड़कर साइकिल के पास गया। उसने साइकिल का हैंडल
पकड़ा, घंटी
बजाई, और
उसकी चमक को निहारा। यह वही साइकिल थी,
जिसे वह पास की दुकान में कई बार देख
चुका था।
"पापा, ये मेरी है?" अंकित ने उत्साह से
पूछा। रमेश, जो
पास में खड़े मुस्कुरा रहे थे, ने सिर हिलाया। "हाँ,
बेटा। ये तुम्हारी है।" अंकित ने
खुशी से अपने पिता को गले लगा लिया। सावित्री रसोई के दरवाजे पर खड़ी यह नजारा देख
रही थीं, और
उनकी आँखों में खुशी के आँसू थे।
उस शाम,
अंकित अपनी नई साइकिल लेकर गलियों में
निकल पड़ा। उसके दोस्त भी उसके साथ थे,
और इस बार कोई मजाक नहीं उड़ा रहा था।
बल्कि, उसके
दोस्त उसकी साइकिल की तारीफ कर रहे थे। अंकित का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। उसे
ऐसा लग रहा था जैसे वह हवा में उड़ रहा हो।
कुछ दिन बाद, अंकित ने गौर किया कि
उसके पिता अब भी वही पुराने, फटे हुए जूते पहन रहे थे। एक दिन, जब रमेश दफ्तर से
लौटे, तो
अंकित ने उनसे पूछ ही लिया, "पापा, आपने नए जूते क्यों
नहीं खरीदे? आपके
जूते तो अब बिल्कुल खराब हो गए हैं।" रमेश ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "अरे, बेटा, अभी तो ये चल रहे
हैं। नए जूते बाद में ले लूँगा।"
लेकिन अंकित को कुछ अटपटा सा लगा। उसने
अपनी माँ से पूछा, "माँ, पापा नए जूते क्यों
नहीं ले रहे? और
इस महीने आपने भी तो कुछ नया नहीं खरीदा।" सावित्री ने पहले तो टालने की
कोशिश की, लेकिन
अंकित के बार-बार पूछने पर उन्होंने सच बता दिया। "बेटा, तुम्हारी साइकिल के
लिए हमने अपनी कुछ जरूरतों को टाल दिया। तुम्हारी खुशी हमारे लिए सबसे जरूरी
थी।"
यह सुनकर अंकित की आँखें नम हो गईं। उसे
एहसास हुआ कि उसकी साइकिल के पीछे उसके माता-पिता का कितना बड़ा त्याग छिपा था।
उसने सोचा कि वह कितना स्वार्थी था,
जो अपनी खुशी में इतना खो गया कि उसने
अपने पिता के फटे जूतों को भी नहीं देखा। उस रात,
अंकित ने अपने पिता के पास जाकर कहा, "पापा, आपने मेरे लिए इतना
कुछ किया। मैं वादा करता हूँ कि मैं मेहनत से पढ़ाई करूँगा और एक दिन आपको गर्व
महसूस करवाऊँगा।"
उस दिन के बाद, अंकित में एक बड़ा
बदलाव आया। वह पहले की तरह अपनी साइकिल पर मस्ती तो करता, लेकिन अब वह अपने
माता-पिता की मेहनत और त्याग को समझने लगा था। उसने अपनी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान
देना शुरू किया। वह घर के छोटे-मोटे कामों में भी अपनी माँ की मदद करने लगा। कभी
वह रसोई में सब्जियाँ काटने में मदद करता,
तो कभी बाजार से सामान लाने में।
रमेश और सावित्री अपने बेटे के इस बदलाव
को देखकर बहुत खुश थे। उन्हें लगता था कि उनकी मेहनत रंग लाई। अंकित अब केवल एक
साइकिल का मालिक नहीं था, बल्कि
वह एक जिम्मेदार और समझदार बेटा बन रहा था।
अंकित की कहानी हमें सिखाती है कि
माता-पिता का प्यार और त्याग अनमोल है। वे अपनी खुशियों को दांव पर लगाकर अपने
बच्चों के सपनों को पूरा करते हैं। अंकित ने अपनी साइकिल के जरिए यह सीखा कि
माता-पिता की हर छोटी-बड़ी कोशिश उनके बच्चों के लिए होती है। यह कहानी बच्चों को
यह भी सिखाती है कि हमें अपने माता-पिता की कद्र करनी चाहिए। उनकी हर डांट, हर सलाह, और हर त्याग के पीछे
उनका प्यार छिपा होता है।
तो,
बच्चों,
अगली बार जब तुम्हें अपने माता-पिता की
कोई बात बुरी लगे, तो
एक पल रुककर सोचना। सोचना कि वे तुम्हारे लिए कितना कुछ करते हैं। उनकी मेहनत, उनके त्याग, और उनके प्यार को
समझो। और हाँ, अगर
तुम्हें कुछ चाहिए, तो
पहले यह देखो कि क्या तुम उनके लिए भी कुछ कर सकते हो। क्योंकि माता-पिता का प्यार
इस दुनिया का सबसे अनमोल खजाना है,
जिसकी कीमत कोई साइकिल, कोई खिलौना, या कोई चीज नहीं चुका
सकती।
माता-पिता और अनुशासन: एक मजबूत नींव
अनुशासन जीवन की सफलता की कुंजी है।
माता-पिता तुम्हें अनुशासन सिखाते हैं ताकि तुम एक जिम्मेदार और आत्मनिर्भर इंसान
बन सको। अनुशासन का मतलब यह नहीं कि वे तुम्हें बांधना चाहते हैं, बल्कि वे तुम्हें सही
और गलत के बीच का फर्क सिखाना चाहते हैं।
अनुशासन के लाभ
- समय का महत्व:
जब माता-पिता तुम्हें समय पर
होमवर्क करने या जल्दी सोने के लिए कहते हैं,
तो वे तुम्हें समय के महत्व को
सिखाते हैं।
- सम्मान:
वे तुम्हें बड़ों का सम्मान करना
और दूसरों की मदद करना सिखाते हैं,
जो तुम्हें एक अच्छा इंसान बनाता
है।
- आत्मनिर्भरता:
अनुशासन तुम्हें अपने काम खुद करने
और अपने लक्ष्यों को हासिल करने की ताकत देता है।
माता-पिता: हमारे पहले गुरु
माता-पिता तुम्हारे पहले शिक्षक हैं।
स्कूल में तुम्हें किताबी ज्ञान मिलता है,
लेकिन माता-पिता तुम्हें जीवन का ज्ञान
देते हैं। वे तुम्हें नैतिकता, संस्कार, और अच्छे बुरे का फर्क सिखाते हैं।
क्या सिखाते हैं
माता-पिता?
- सच्चाई:
माता-पिता तुम्हें हमेशा सच बोलने
की सलाह देते हैं, क्योंकि सच तुम्हें मजबूत बनाता है।
- मेहनत:
वे तुम्हें मेहनत करने की प्रेरणा
देते हैं, ताकि तुम अपने सपनों को पूरा कर सको।
- दया और सहानुभूति:
वे तुम्हें दूसरों की मदद करना और
दयालु बनना सिखाते हैं।
माता-पिता के साथ समय बिताना
बच्चो,
याद रखो — दुनिया में बहुत लोग मिलेंगे, कुछ अच्छे, कुछ बुरे, कुछ दोस्त, कुछ शिक्षक। पर जो
निस्वार्थ भाव से सिर्फ तुम्हारा भला चाहते हैं,
वे हैं तुम्हारे माता-पिता। वे बिना
किसी स्वार्थ के दिन-रात तुम्हारे भविष्य को सँवारने के लिए मेहनत करते हैं। चाहे
बीमारी हो, परेशानी
हो या आर्थिक तंगी — वे हमेशा तुम्हारे लिए खड़े रहते हैं।
इसलिए हमें कभी भी माता-पिता से ऊँची
आवाज़ में बात नहीं करनी चाहिए, उन्हें तंग नहीं करना चाहिए। उनकी बातों को ध्यान से सुनना
चाहिए और अगर कभी उनकी बात समझ में न आए,
तो शांति से पूछना चाहिए। जब हम उनका
सम्मान करेंगे, तब
ही हम अच्छे इंसान बन पाएँगे।
और सबसे ज़रूरी बात — जब वे बूढ़े हो
जाएँ, तो
उन्हें अकेला महसूस न होने दो। जिस तरह वे तुम्हारे बचपन में हर कदम पर साथ खड़े
थे, वैसे
ही तुम भी उनके बुढ़ापे में उनका सहारा बनो। यही सच्ची सेवा है, यही इंसानियत है।
बच्चों,
माता-पिता के साथ समय बिताना बहुत जरूरी
है। उनके साथ बात करना, उनकी
कहानियाँ सुनना, और
उनके साथ हँसना-खेलना तुम्हारे रिश्ते को और मजबूत करता है। जब तुम उनके
साथ समय बिताते हो, तो
तुम्हें उनके प्यार और उनकी चिंताओं को समझने का मौका मिलता है।
कुछ सुझाव
- बातचीत करें:
रोजाना अपने माता-पिता से अपने दिन
के बारे में बात करो। उन्हें बताओ कि स्कूल में क्या हुआ, तुमने
क्या सीखा।
- सहायता करें:
घर के छोटे-मोटे कामों में उनकी
मदद करो, जैसे कि माँ के साथ खाना बनाने में मदद करना या पिता के
साथ बगीचे में काम करना।
- खेलें:
अपने माता-पिता के साथ बोर्ड गेम
खेलो या बाहर टहलने जाओ। इससे तुम्हारा रिश्ता और गहरा होगा।
माता-पिता का सम्मान
माता-पिता का सम्मान करना हमारा कर्तव्य
है। वे तुम्हारे लिए इतना कुछ करते हैं,
तो तुम्हारा भी फर्ज है कि तुम उनकी
इज्जत करो। उनकी बात मानना, उनकी
सलाह पर अमल करना, और
उनके प्रति कृतज्ञता दिखाना तुम्हें एक बेहतर इंसान बनाता है।
सम्मान कैसे करें?
- उनकी बात सुनें:
जब वे तुमसे कुछ कहें, तो
ध्यान से सुनो और समझने की कोशिश करो।
- धन्यवाद कहें:
उनकी छोटी-छोटी मदद के लिए भी
धन्यवाद कहो। इससे उन्हें खुशी मिलती है।
- गलतियों के लिए माफी माँगें: अगर
तुमसे कोई गलती हो जाए, तो माता-पिता से माफी माँगो। इससे तुम्हारा रिश्ता और मजबूत
होता है।
निष्कर्ष
बच्चों,
माता-पिता तुम्हारे सच्चे शुभचिंतक हैं।
उनकी हर डांट, हर
सलाह, और
हर फैसला तुम्हारे भले के लिए होता है। हो सकता है कि तुम्हें उनकी बातें कभी-कभी
सख्त या अनुचित लगें, लेकिन
जब तुम बड़े होगे, तो
तुम्हें एहसास होगा कि उन्होंने तुम्हें कितना प्यार और सुरक्षा दी। उनके त्याग, उनके प्यार, और उनके अनुशासन ने
तुम्हें वह इंसान बनाया, जो
तुम आज हो।
इसलिए,
अपने माता-पिता की कद्र करो। उनके साथ
समय बिताओ, उनकी
बातें सुनो, और
उनके प्रति कृतज्ञता दिखाओ। वे तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी ताकत हैं। जब तुम उनके
साथ रहते हो, तो
तुम्हें हमेशा यह एहसास होगा कि तुम इस दुनिया में अकेले नहीं हो—तुम्हारे पास
तुम्हारे माता-पिता हैं, जो
तुमसे बिना किसी शर्त के प्यार करते हैं।
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