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एक पुरानी कहानी थी कि एक बार एक बेहद ग़रीब आदमी* एक राजा के पास गया औऱ उनसे फ़रियाद की...उसके पास कुछ भी नहीं, उसे मदद चाहिए...
राजा दयालु था...उसने पूछा कि "क्या मदद चाहिए?
आदमी ने कहा..."थोड़ा-सा #भूखंड..!
राजा ने कहा, “कल सुबह सूर्योदय के समय तुम यहां आना...ज़मीन पर तुम दौड़ना जितनी दूर तक दौड़ पाओगे वो पूरा भूखंड तुम्हारा होगा
परंतु ध्यान रहे,जहां से तुम दौड़ना शुरू करोगे, सूर्यास्त तक तुम्हें वहीं लौट आना होगा,अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा..!"
वह आदमी खुश हो गया...
सुबह हुई...सूर्योदय के साथ आदमी दौड़ने लगा...वो आदमी दौड़ता रहा...
दौड़ता रहा...सूरज सिर पर चढ़ आया था...पर आदमी का दौड़ना नहीं रुका था...वो हांफ रहा था, पर रुका नहीं...थोड़ा और...थोड़ा और एक बार की मेहनत है...फिर पूरी ज़िंदगी आराम ही आराम...अब शाम होने लगी थी...
फिर अचानक उस आदमी को याद आया कि लौटना भी है, नहीं तो फिर कुछ नहीं मिलेगा...
उसने देखा, वो काफी दूर चला आया था...अब उसे लौटना था...पर कैसे लौटता❓उस आदमी ने लौटने के लिए पूरा दम लगाया...
वो लौट सकता था...पर समय तेजी से बीत रहा था...वह अब बार-2 सोच रहा था कि थोड़ी ताकत और लगानी होगी...
अब वो पूरी गति से दौड़ने लगा...लेकिन अब उससे दौड़ा नहीं जा रहा था...वो थक कर वहीं गिर गया औऱ जहां वह गिरा, वहीं उसके प्राण पखेरू निकल गए..!
राजा को जब समाचार मिला तो अपने सहयोगियों के साथ वो वहां गया, जहां आदमी ज़मीन पर गिरा था...
राजा ने उसे गौर से देखा और सिर्फ़ इतना ही कहा...
"इसे सिर्फ दो गज़ ज़मीन की दरकार थी...खामखां बिना बात ही ये इतना दौड़ रहा था..!"
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