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मौत ही हमारा स्वाद

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जरा गौर करें अपनी मृत्यु

और अपनों की मृत्यु भयभीत करती है। और बाकी तो मौत को enjoy ही करता है मनुष्य! मौत से भयभीत, फिर भी मौत ही हमारा स्वाद भी है।---


बकरे का,

गाय का,

भेंस का,

ऊँट का,

सुअर,

हिरण का,

तीतर का,

मुर्गे का,

हलाल का,

बिना हलाल का,

ताजा बकरे का,

भुना हुआ,

छोटी मछली,

बड़ी मछली,

हल्की आंच पर सिका हुआ।

न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के।

क्योंकि मौत किसी और की,

और स्वाद हमारा....

स्वाद से कारोबार बन चुकी है मौत।

मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स।

नाम पालन और मक़सद हत्या!

स्लाटर हाउस तक खोल दिये।

वो भी ऑफिशियल।

गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ?

मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है!!

जो हमारी तरह बोल नही सकते,

अभिव्यक्त नही कर सकते,

अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं, उनकी निरीहता को हमने अपना बल मान लिया है !

कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ?

या उनकी आहें नहीं निकलतीं ?

अपनी अगर उंगली भी कट जाए तो.... क्या खुशी से झूमते हो?और अगर कोई अपने या अपनों की गर्दन पर छुरा रख दे तो????

डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप अपने बच्चों को सीख देते है; बेटा कभी किसी का दिल नही दुखाना ! किसी की आहें मत लेना !

किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए !

बच्चों में झूठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ में वो हडडी दिखाई नही देती, जो इससे पहले एक शरीर थी, जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...??

जिसे काटा गया होगा ?

जो कराहा होगा ?

जो तड़पा होगा ?

जिसकी आहें निकली होंगी ?

जिसने बद दुआ भी दी होगी ?

कैसे मान लिया कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो

भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे ..

क्या मूक जानवर का कोई भगवान नहीं,

उस परमपिता परमेश्वर की ये संतान नहीं हैं!

क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है !!

धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ई पर बकरे काटते हो (सबसे ज्यादा), कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो!

कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो!

कभी सोचा ...!!!

क्या ईश्वर का स्वाद होता है ? ...

क्या है उनका भोजन ?

किसे ठग रहे हो ?

भगवान को ? या खुद को ?

मंगलवार को नानवेज नही खाता ...!!!

आज शनिवार है इसलिए नहीं ...!!!

अभी रोज़े चल रहे हैं ....!!!

नवरात्रि में तो सवाल ही नही उठता ....!!!

झूठ पर झूठ.......झूठ पर झूठ

..झूठ पर झूठ ..

ईश्वर ने बुद्धि सिर्फ तुम्हे दी,

ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म मृत्यु के चक्र से निकलने का रास्ता ढूँढ सको।

लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं को भगवान समझ लिया!

तुम्ही कहते हो, कि हम जो प्रकति को देंगे, वही प्रकृति हमे लौटायेगी।जब आहें दोगे तो आहें मिलेंगी।

गला काटोगे तो कटवाना पड़ेगा!

किसी जीव को तल भून कर जीभ का स्वाद बनाओगे तो पक्का मानिए, खुद इसी प्रक्रिया का हिस्सा एक दिन बनना पड़ेगा!यह संकेत है ईश्वर का। प्रकृति के साथ रहो। प्रकृति के होकर रहो। हाथ जोड़कर विनय रहेगी हमारी।

तजो नशा, तजो मांसाहार

बनो शाकाहारी।

कर्मों की माफी मनुष्य शरीर में रहते ही हो सकती है।

शरीर छूटने के बाद तो उसकी कचहरी में हिसाब होता है।

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