करुणा की पुकार
गाँव के एक छोटे से खेत में गोमती नाम की एक गाय अपने नन्हे बछड़े, चीकू, के साथ रहती थी। चीकू अपनी माँ के चारों ओर उछलता-कूदता, खेलता और उसकी ममता भरी नजरों में खुद को सुरक्षित महसूस करता। लेकिन उसे यह नहीं पता था कि यह सुरक्षा केवल कुछ दिनों की ही मेहमान है।
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माँ की ममता और बछड़े का बचपन
गोमती एक बहुत ही स्नेही माँ थी। चीकू जब भी डरता, वह अपनी माँ के नीचे दुबक जाता। जब गोमती उसे प्यार से चाटती, तो उसे ऐसा लगता मानो वह दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह पर है। हर सुबह जब सूरज उगता, चीकू ताजी घास पर दौड़ता-भागता और दूसरे बछड़ों के साथ खेलता। खेतों की ठंडी हवा में उसकी मासूमियत खिलखिला उठती।
लेकिन उसके जीवन की यह खुशी ज्यादा दिनों तक टिकने वाली नहीं थी।
क्रूरता की शुरुआत
एक दिन, चीकू अपनी माँ के पास बैठा दूध पी रहा था, तभी कुछ लोग आए और गोमती को बाँधकर उसका दूध निकालने लगे। चीकू को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि माँ के दूध का एक भी बूँद उसे नहीं दिया गया।
वह समझ नहीं पाया कि इंसानों को उसकी माँ के दूध की ज़रूरत क्यों थी, जबकि वह खुद भूखा था। धीरे-धीरे, गोमती का दूध इंसानों के लिए निकाला जाने लगा, और चीकू को अलग बाड़े में बाँध दिया गया। वह माँ को पुकारता, लेकिन कोई उसकी पुकार सुनने वाला नहीं था।
हर दिन गोमती को जबरदस्ती मशीनों से दुहा जाता। उसका शरीर कमजोर होने लगा, लेकिन इंसानों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। चीकू की मासूम आँखों में यह दृश्य किसी बुरे सपने जैसा था।
बछड़े की बेबसी
चीकू ने धीरे-धीरे यह महसूस किया कि उसकी माँ की दुनिया अब बदल चुकी थी। वह अब सिर्फ दूध देने वाली मशीन बन चुकी थी। उसे कोई प्यार नहीं करता था, कोई उसकी भावनाओं को नहीं समझता था। चीकू भी भूख से तड़पने लगा क्योंकि अब उसे अपनी माँ का दूध नहीं मिलता था। उसकी जगह वह गाय का दूध अब बाजार में बेचा जाता था, और इंसानों के बच्चे उसे खुशी-खुशी पीते थे।
एक दिन, चीकू को वहाँ से ले जाया गया। रास्ते में उसने एक गाड़ी में कई अन्य बछड़ों को देखा, जो डरे-सहमे हुए थे। जल्द ही उसे समझ में आ गया कि यह सफर उसकी माँ से दूर जाने का है, शायद हमेशा के लिए।
बूचड़खाने की भयावहता
चीकू को एक बूचड़खाने में ले जाया गया, जहाँ उसके जैसे न जाने कितने मासूम बछड़ों को काटा जा रहा था। वहाँ उसने देखा कि कैसे निर्दोष बछड़ों को कतार में खड़ा कर दिया जाता था और एक-एक कर उनकी हत्या कर दी जाती थी। उनकी दर्दभरी चीखें पूरे बूचड़खाने में गूँज रही थीं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था।
वह काँप उठा, उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसकी आँखों के सामने दो गिलास थे—एक दूध से भरा, और दूसरा खून से। उसे अब समझ में आ चुका था कि जो दूध लोग अपने बच्चों को पिलाते हैं, उसके बदले न जाने कितने मासूमों का खून बहाया जाता है।
क्या हम करुणा को चुनेंगे?
यह केवल चीकू की कहानी नहीं थी, यह हर उस बछड़े की कहानी थी जो अपनी माँ की ममता से वंचित हो गया था। क्या हम इस निर्दयता को समझ सकते हैं? क्या हम अपने स्वाद के लिए निर्दोष प्राणियों का यह बलिदान स्वीकार कर सकते हैं?
हर गिलास दूध और हर मांस के टुकड़े के पीछे एक मासूम की चीखें छुपी होती हैं। यह समय है सोचने का, यह समय है करुणा दिखाने का।
हमारे पास हमेशा एक विकल्प होता है—दया और करुणा का। यदि हम सच में इस क्रूरता को खत्म करना चाहते हैं, तो हमें अपने आहार और जीवनशैली में बदलाव लाने होंगे।
करुणा को चुनें, अहिंसा को अपनाएँ
हमारी छोटी-छोटी पसंदें बड़े बदलाव ला सकती हैं। यदि हम दयालुता को चुनें, तो हम उन मासूम प्राणियों के लिए एक बेहतर दुनिया बना सकते हैं। आइए, मिलकर यह प्रण लें कि हम हर जीव के प्रति संवेदनशील रहेंगे और करुणा को अपने जीवन का हिस्सा बनाएँगे।
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