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मृत्यु: अंत या बदलाव?

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मृत्यु को हमेशा से जीवन का अंत माना गया है, एक ऐसी सच्चाई जो हर जीव को स्वीकार करनी पड़ती है। लेकिन कुछ नई और रोचक अवधारणाएँ, जो क्वांटम भौतिकी से प्रेरित हैं, यह कहती हैं कि मृत्यु शायद एक भ्रम हो, जो हमारे दिमाग की बनाई हुई धारणा है। ये विचार वैज्ञानिक कम और दार्शनिक या आध्यात्मिक ज्यादा लगते हैं। आइए, इसे सरल भाषा में, एक मिथक या धार्मिक अवधारणा की तरह समझने की कोशिश करते हैं।

समय और स्थान का भ्रम

हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में समय और स्थान बहुत महत्वपूर्ण हैं। हम सोचते हैं कि समय एक सीधी रेखा की तरह चलता है—पहले जन्म, फिर जीवन, और अंत में मृत्यु। लेकिन अगर हम यह मानें कि समय और स्थान हमारे दिमाग की बनाई हुई चीज़ें हैं, तो मृत्यु का मतलब बदल सकता है।

एक मिथक की तरह सोचें: मान लीजिए, हमारा जीवन एक सपने जैसा है। सपने में हम समय को महसूस करते हैं, लेकिन जब हम जागते हैं, तो पता चलता है कि वह सब कुछ दिमाग का बनाया हुआ था। उसी तरह, कुछ लोग कहते हैं कि समय और स्थान सिर्फ़ हमारे दिमाग की रचना हैं, जो हमें दुनिया को समझने में मदद करते हैं। अगर समय वास्तव में मौजूद नहीं है, तो मृत्यु जैसी कोई चीज़ भी नहीं हो सकती। यह विचार हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि शायद मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत या बदलाव है।

सभी संभावनाएँ एक साथ मौजूद हैं

एक और रोचक विचार यह है कि हर संभव हकीकत एक साथ मौजूद है। इसे एक धार्मिक कहानी की तरह समझें। कल्पना करें कि हमारी दुनिया एक विशाल किताब है, जिसमें अनगिनत कहानियाँ एक साथ लिखी हुई हैं। हर कहानी में आपका जीवन अलग-अलग तरीके से चल रहा है। किसी कहानी में आप एक जगह पर हैं, तो किसी और कहानी में आप कहीं और।

अब, अगर मृत्यु की बात करें, तो हो सकता है कि एक कहानी में आपकी मृत्यु हो जाए, लेकिन दूसरी कहानी में आप जीवित रहें। यह विचार कुछ हिंदू और बौद्ध मान्यताओं से भी मिलता-जुलता है, जहाँ आत्मा को अमर माना जाता है। हिंदू धर्म में, आत्मा एक शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में चली जाती है, जैसे कोई कपड़े बदलता है। इस नए विचार के मुताबिक, शायद मृत्यु सिर्फ़ एक कहानी का अंत है, लेकिन दूसरी कहानी में आपका जीवन चलता रहता है।

मृत्यु: अंत या बदलाव?

यह विचार हमें मृत्यु को एक डरावने अंत की तरह देखने के बजाय, उसे एक रहस्यमयी बदलाव की तरह देखने के लिए प्रेरित करता है। हिंदू दर्शन में, मृत्यु को मोक्ष या नई शुरुआत का द्वार माना जाता है। अगर हम यह मानें कि समय और मृत्यु हमारे दिमाग की बनाई हुई चीज़ें हैं, तो शायद मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि एक नई यात्रा की शुरुआत है।

एक लोककथा की तरह सोचें: एक नदी जो एक जगह पर खत्म होती दिखती है, लेकिन वास्तव में वह समुद्र में जाकर मिल जाती है। क्या वह नदी खत्म हुई? नहीं, वह बस रूप बदलकर समुद्र बन गई। उसी तरह, शायद हमारी आत्मा या चेतना मृत्यु के बाद किसी और रूप में, किसी और कहानी में, जीवित रहती है।

जीवन और मृत्यु का नया नज़रिया

ये विचार वैज्ञानिक सिद्धांतों से शुरू हुए हो सकते हैं, लेकिन इन्हें हम एक आध्यात्मिक या मिथकीय नज़रिए से भी देख सकते हैं। यह हमें सिखाता है कि जीवन और मृत्यु को डर या दुख के चश्मे से देखने की ज़रूरत नहीं है। शायद मृत्यु एक भ्रम है, जैसे कोई पर्दा जो हमें पूरी सच्चाई देखने से रोकता है।

हिंदू धर्म में, भगवद् गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मरती है। यह विचार भी उससे मिलता-जुलता है। अगर हम यह मानें कि हमारी चेतना अनंत है और समय सिर्फ़ एक भ्रम है, तो मृत्यु का डर कम हो सकता है। यह हमें अपने जीवन को और गहराई से जीने की प्रेरणा देता है, क्योंकि हम जानते हैं कि हमारी कहानी कभी खत्म नहीं होती—वह बस नए-नए रूप लेती रहती है।

 

क्या मृत्यु सच में अंत है?

हमने बचपन से सुना है कि शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अमर। गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं —
"
न जायते म्रियते वा कदाचित्..."
(
आत्मा न कभी जन्म लेती है, न मरती है।)

यानि जब कोई मरता है, तो सिर्फ उसका शरीर खत्म होता है, आत्मा नहीं। आत्मा तो एक वस्त्र की तरह शरीर बदलती है, जैसे हम पुराने कपड़े उतारकर नए पहनते हैं।


मृत्यु एक दरवाजा है, दीवार नहीं

जैसे एक कमरा खत्म होता है तो हम दूसरे में प्रवेश करते हैं, वैसे ही मृत्यु भी एक कमरे से दूसरे में जाने जैसा है। यह कोई दीवार नहीं है कि जिसके बाद कुछ नहीं, बल्कि एक दरवाजा है — उस पार कोई और जीवन, कोई और यात्रा।




अनंत ब्रह्मांडों की अवधारणा

हमारे पुराणों में यह कहा गया है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश के भी अनेक रूप हैं, और अनगिनत ब्रह्मांड हैं।
"
अनेक ब्रह्मांडों में अनेक प्रकार के जीव, आत्माएँ और यात्राएँ चल रही हैं।"

इससे यह कल्पना भी जुड़ती है कि अगर एक संसार में मृत्यु होती है, तो आत्मा किसी और ब्रह्मांड में अपना जीवन शुरू कर सकती है — कुछ वैसा ही जैसा आधुनिक विज्ञान के “Many Worlds” सिद्धांत में कहा गया है।


स्वप्न और मृत्यु में समानता

हमें सपनों में जो कुछ दिखाई देता है, वह कितना असली लगता है, है ना? पर जब हम उठते हैं तो समझ आता है कि वह सपना था।
कई संत-महात्मा कहते हैं कि वैसे ही ये जीवन भी एक स्वप्न है — जब मृत्यु आती है, तब हम एक गहरी नींद से जागते हैं और किसी और यथार्थ में प्रवेश करते हैं।


पुनर्जन्म और कर्म का सिद्धांत

हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में मान्यता है कि आत्मा जन्म-जन्मांतर तक अपने कर्मों के अनुसार शरीर धारण करती है।
तो मृत्यु केवल एक ब्रेक है, न कि अंत।
जैसे कोई यात्री थककर एक स्टेशन पर रुकता है, फिर अपनी यात्रा आगे बढ़ाता है — वैसे ही आत्मा भी मृत्यु के बाद थोड़ी देर विश्राम कर अगली यात्रा पर निकल जाती है।


कहानी: “उस पार का उजाला”

वाराणसी के घाटों पर एक वृद्ध ब्राह्मण, पंडित त्रिपाठी, रोज संध्या को तुलसी घाट पर बैठकर शास्त्रों और पुराणों की बातें सुनाते थे। लोगों की भीड़ उनके चारों ओर इकट्ठी होती, कोई सवाल करता — “पंडित जी, मृत्यु के बाद क्या होता है?”, “क्या आत्मा फिर लौटती है?” — और वे मुस्कराकर कहते, “बिलकुल... सुनिए एक कथा।”


कहानी की नायिका है मेघा, एक 28 वर्षीय युवती जो दिल्ली की एक बड़ी कंपनी में नौकरी करती थी। उसने कभी धर्म, पुनर्जन्म या आत्मा जैसी बातों पर ध्यान नहीं दिया था। लेकिन उसके जीवन की दिशा तब बदली जब उसके पिता की अचानक मृत्यु हो गई।

शोक में डूबी मेघा को रात में एक सपना आया — पिता एक बगीचे में खड़े हैं, मुस्कुरा रहे हैं, और कह रहे हैं,
"बेटी, मैं गया नहीं हूँ... बस एक और यात्रा पर हूँ..."

वह चौंक कर उठी। सपना बहुत वास्तविक था। लेकिन उसने इसे एक मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया मानकर नजरअंदाज कर दिया।


कुछ ही समय बाद, मेघा के घर में अजीब चीज़ें घटने लगीं। उसके पिता के कमरे में रखा रुद्राक्ष अचानक नीचे गिर जाता, दीया अपने आप बुझ जाता, और एक रात मेघा को लगा जैसे किसी ने उसका सिर सहलाया हो।

उसने यह सब अपनी मां को बताया, जो पहले तो चुप रहीं, फिर बोलीं,
"तेरे नाना के साथ भी ऐसा ही हुआ था जब उनके पिता मरे थे। आत्माएँ जाती नहीं... संकेत देती हैं।"


उसे जवाब चाहिए था। वह काशी पहुंची — जहां आत्मा के मोक्ष का मार्ग खुलता है, ऐसा विश्वास है। तुलसी घाट पर उसकी मुलाकात पंडित त्रिपाठी से हुई।

मेघा ने अपना अनुभव सुनाया।

पंडित मुस्कराए और बोले:

तुम्हारा अनुभव साधारण नहीं। आत्माएँ तब तक नहीं जातीं जब तक कुछ अधूरा हो। और मृत्यु... वह अंत नहीं, एक यात्रा का पड़ाव है।”


पंडित त्रिपाठी ने उसे तीन उदाहरण सुनाए:

  1. डॉ. एबेन अलेक्जेंडर (Dr. Eben Alexander):
    एक न्यूरोसर्जन, जो खुद मौत के करीब गए। 7 दिन कोमा में रहे। वे कहते हैं कि उन्होंने “स्वर्ग” जैसा स्थान देखा — जहाँ प्रकाश, संगीत, और अद्भुत शांति थी। उन्हें एहसास हुआ कि चेतना शरीर के बाहर भी रहती है।
  2. पाम रेनॉल्ड्स (Pam Reynolds):
    अमेरिका की एक महिला जिनकी सर्जरी के दौरान हृदय और मस्तिष्क पूरी तरह निष्क्रिय कर दिए गए थे (medically dead)। लेकिन बाद में उन्होंने डॉक्टर्स की बातचीत और औजारों का विवरण दिया — जो चिकित्सा विज्ञान से परे था।
  3. भारत के केस:
    राजस्थान में शांति देवी नाम की लड़की जब छोटी थी, तो उसने अपने पिछले जन्म की बातें बताईं — अपने पति, बच्चा, और घर के बारे में। जांच करने पर सब सच निकला। ये केस महात्मा गांधी तक पहुँचा था।

पंडित बोले:

बेटी, आत्मा एक यायावर (यात्री) है। जब तक उसके कर्म पूरे नहीं होते, वह लौटती रहती है। लेकिन जिसने अपने कर्तव्यों को निःस्वार्थ भाव से पूरा किया — वह इस चक्र से मुक्त हो जाता है।”

मेघा की आंखों में अब डर नहीं, बल्कि जिज्ञासा थी। वह धीरे-धीरे आत्मा, ध्यान और सेवा के मार्ग पर चल पड़ी।


कई वर्षों बाद, मेघा भी एक साध्वी बन गई। उसने अपनी नौकरी छोड़ी और बनारस में एक आश्रम शुरू किया — जहाँ लोग मृत्यु के भय से मुक्ति पाएं।

वह हमेशा कहती:

मृत्यु अंधेरा नहीं... वह तो एक दरवाजा है, जिसके उस पार उजाला है।”


शिक्षा

इस कहानी से यह सीख मिलती है कि मृत्यु से डरने की नहीं, समझने की ज़रूरत है। आत्मा न तो खत्म होती है, न खो जाती है। वह बस एक अवस्था से दूसरी में जाती है — जैसे नदी बहती रहती है, एक घाट छोड़कर दूसरे घाट तक।

हिंदू धर्मग्रंथों और पौराणिक कथाओं में मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा, पुनर्जन्म, स्वर्ग-नरक, और मोक्ष जैसे विषयों पर विस्तृत रूप से चर्चा की गई है। नीचे कुछ प्रमुख ग्रंथों और उनके अंश (extracts) दिए गए हैं जो मृत्यु के बाद के जीवन को समझाने में सहायक हैं:


1. भगवद गीता (अध्याय 2, श्लोक 20)

श्लोक:

न जायते म्रियते वा कदाचित्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥”

भावार्थ:
आत्मा न कभी जन्म लेती है, न मरती है। वह नित्य (शाश्वत), अजर (न बूढ़ी होने वाली), और पुरातन है। जब शरीर नष्ट होता है, तब भी आत्मा नहीं मरती।

विचार:
यह श्लोक स्पष्ट रूप से कहता है कि मृत्यु केवल शरीर का अंत है, आत्मा का नहीं। आत्मा अमर है और पुनः नए शरीर में प्रवेश करती है।


2. गरुड़ पुराण (प्रेत खंड)

विवरण:
यह पुराण विशेष रूप से मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा, यमलोक, कर्मफल, पिंडदान, श्राद्ध और स्वर्ग-नरक के वर्णन के लिए प्रसिद्ध है।

एक अंश:

"मृत्युकाले मनुष्य की आत्मा शरीर छोड़कर यमदूतों द्वारा यमलोक ले जाई जाती है। वहां उसके पाप-पुण्य के अनुसार निर्णय होता है कि आत्मा को स्वर्ग मिले, नरक मिले या पुनर्जन्म मिले।"

विशेष:
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा को 11 दिनों तक विभिन्न योनियों से गुजरना होता है और फिर उसे नया जन्म या मोक्ष मिलता है।


3. कठ उपनिषद (अध्याय 1, वल्ली 2)

यम और नचिकेता संवाद:
इस ग्रंथ में मृत्यु के देवता यम और एक बालक नचिकेता के बीच संवाद है, जिसमें मृत्यु और आत्मा के रहस्य पर चर्चा होती है।

एक प्रसिद्ध अंश:

"न जायते म्रियते वा विपश्चित्..."
(ज्ञानी आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। यह अजन्मा, नित्य, और अजर है।)

सार:
यह उपनिषद आत्मा की नित्य और शाश्वत प्रकृति को दर्शाता है, और यह भी कि मृत्यु आत्मा के लिए एक भ्रम है।


4. महाभारत (शांति पर्व)

भीष्म पितामह मृत्यु शैया पर युधिष्ठिर को धर्म, नीति और जीवन-मरण के गूढ़ रहस्य बताते हैं।

एक अंश:

मृत्यु कोई अंत नहीं है। यह केवल आत्मा के शरीर परिवर्तन का माध्यम है। धर्म और कर्म ही आत्मा के अगले गंतव्य को तय करते हैं।”


5. योग वशिष्ठ

यह ग्रंथ श्रीराम और ऋषि वशिष्ठ के बीच संवाद है जिसमें जीवन, मृत्यु, आत्मा और ब्रह्म की गूढ़ बातें हैं।

एक उद्धरण:

मृत्यु एक सपना है, जो आत्मा को जगाने का माध्यम बनती है। आत्मा कभी मरती नहीं, वह केवल चेतना बदलती है।”


निष्कर्ष

हिंदू ग्रंथों में मृत्यु को कभी भी पूर्ण विराम नहीं माना गया। यह एक अवस्था परिवर्तन है — जहाँ आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर नए जीवन की ओर बढ़ती है। आत्मा की यात्रा कर्म, संस्कार, और चेतना पर आधारित होती है।

यहाँ एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा प्रस्तुत है, जो मृत्यु के बाद की दुनिया और इस लोक (मृत्यु लोक) के बीच यात्रा को दर्शाती है। यह कथा न केवल मनोरंजक है, बल्कि हिंदू धर्म में आत्मा, पुनर्जन्म और परलोक की गूढ़ समझ भी देती है।


कथा: नचिकेता और यमराज

बहुत समय पहले की बात है। एक सत्यनिष्ठ ब्राह्मण वाजश्रवस ने अपने पुत्र नचिकेता से कहा कि वह एक यज्ञ कर रहा है और अपनी सारी संपत्ति दान कर देगा। लेकिन नचिकेता ने देखा कि उसके पिता केवल बूढ़ी, काम न आने वाली गायें दान कर रहे हैं।

नचिकेता की जिज्ञासा

नचिकेता ने पूछा,

पिताजी! अगर आप सब कुछ दान कर रहे हैं, तो मुझे किसे देंगे?”

वाजश्रवस ने गुस्से में आकर कहा:

मैं तुझे मृत्यु को दे दूँगा!”

यह कह तो दिया गया, लेकिन शब्दों का बल बहुत बड़ा होता है। नचिकेता सचमुच यमलोक की ओर चल पड़ा।


यमलोक में प्रवेश

जब नचिकेता यमराज के द्वार पर पहुँचा, उस समय यमराज वहां नहीं थे। नचिकेता ने तीन दिन तक बिना खाए-पिए यमराज के द्वार पर प्रतीक्षा की।

जब यमराज लौटे, उन्होंने बालक की निष्ठा देख कर कहा:

मैं तुमसे प्रसन्न हूँ। तीन वर मांगो।”


वरदानों का चुनाव

  1. पहला वर: नचिकेता ने कहा, “मेरे पिताजी मुझसे प्रसन्न हों और मुझे देखकर शांत हो जाएं।”
    • यमराज ने वर दे दिया।
  2. दूसरा वर:मैं अग्नि यज्ञ (जो स्वर्ग तक पहुँचाता है) का रहस्य जानना चाहता हूँ।”
    • यमराज ने उसे यज्ञ की विधि सिखाई और इसे ‘नचिकेता अग्नि’ कहा गया।
  3. तीसरा वर (सबसे महत्वपूर्ण):मृत्यु के बाद क्या होता है? आत्मा कहां जाती है? क्या आत्मा रहती है?”
    • यमराज पहले टालते हैं, कहते हैं, “यह बहुत कठिन प्रश्न है। इससे बड़े-बड़े देवता भी अनजान हैं। कुछ और माँग लो।”
    • लेकिन नचिकेता अडिग रहता है।

मृत्यु के रहस्य का उद्घाटन

यमराज अंततः बताते हैं:

आत्मा नित्य है। न वह जन्म लेती है, न मरती है। शरीर नष्ट होता है, आत्मा नहीं। मृत्यु केवल परिवर्तन है। जो व्यक्ति आत्मा को समझ लेता है, वह पुनर्जन्म से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है।”

इस प्रकार नचिकेता मृत्यु के द्वार से लौट कर अमूल्य ज्ञान लेकर आता है — जो आगे चलकर कठ उपनिषद बना।

सावित्री-सत्यवान और аркण्डेय ऋषि की कथाएँ भी मृत्यु और परलोक से जुड़े रहस्यों को उजागर करती हैं। ये कथाएँ पौराणिक होने के साथ-साथ आध्यात्मिक प्रतीकों से भरपूर हैं।




1. सावित्री और सत्यवान की अमर प्रेमकथा

स्रोत: महाभारत (वन पर्व)

कथा का आरंभ

राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री अत्यंत सुंदर, बुद्धिमान और निष्ठावान थी। उसने तपस्वी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से विवाह करने का निर्णय लिया। लेकिन नारद मुनि ने चेताया कि सत्यवान केवल एक वर्ष जीवित रहेगा।

सावित्री ने कहा:

महाराज, जब मैंने एक बार किसी को पति रूप में चुना है, तो वह मेरे लिए जन्म-जन्म का पति है।”


मृत्यु का दिन

विवाह के एक वर्ष बाद, जिस दिन सत्यवान की मृत्यु होनी थी, सावित्री व्रत रखकर जंगल में उसके साथ गई। सत्यवान लकड़ी काट रहा था तभी वह अचानक बेहोश होकर गिर पड़ा — और उसी समय यमराज उसकी आत्मा को लेने आए।


सावित्री और यमराज का संवाद

सावित्री ने यमराज का पीछा किया। यमराज ने कहा, "तुम अब अपने पति को नहीं लौटा सकती। वह मेरे साथ जाना होगा।"

लेकिन सावित्री ने धर्म, नारी धर्म, निष्ठा, और भक्ति की बातें करते हुए यमराज को प्रभावित किया।

यमराज बोले,

मैं तुम्हें तीन वरदान देता हूँ — लेकिन सत्यवान का जीवन छोड़कर।”

सावित्री ने मांगे:

  1. उसके ससुर का नेत्र वापस मिले और उनका राज्य।
  2. उसके पिता को सौ पुत्र।
  3. स्वयं को सौ पुत्र।

अब यमराज चौंके — "तुम कैसे सौ पुत्रों की माँ बनोगी जब तुम्हारा पति मेरे साथ है?"
यह सुनते ही उन्होंने सत्यवान को जीवनदान दे दिया।


कथा का सार

  • सावित्री की भक्ति, धर्मनिष्ठा, और चातुर्य ने मृत्यु को भी झुका दिया।
  • यह कथा सिखाती है कि प्रेम और सत्य के आगे मृत्यु भी हार मानती है।

2. मार्कंडेय ऋषि और मृत्यु से मुक्ति

महान तपस्वी मृकंडु ऋषि और उनकी पत्नी मृकंडा ने संतान प्राप्ति के लिए शिव की आराधना की। उन्हें दो विकल्प दिए गए:

  1. एक बुद्धिमान पुत्र जो अल्पायु होगा (16 वर्ष की उम्र में मरेगा)
  2. एक मूर्ख पुत्र जो दीर्घायु होगा।

उन्होंने पहला विकल्प चुना, और उन्हें मिला एक दिव्य पुत्र – मार्कंडेय


16वें वर्ष की घड़ी

जब मार्कंडेय का 16वाँ जन्मदिन आया, उन्होंने मृत्यु से बचने के लिए घोर शिव उपासना शुरू कर दी।
यमराज मृत्युदूतों के साथ आए, और उन्होंने जैसे ही मार्कंडेय पर फांसी (पाश) डाला, वह शिवलिंग से लिपट गया।


भगवान शिव का प्रकट होना

यमराज का पाश शिवलिंग पर भी पड़ा। इस पर भगवान शिव प्रकट हुए, क्रोधित हुए और यमराज पर त्रिशूल चला दिया।

शिव बोले:

जो भी मेरी भक्ति से लिपटकर मेरी शरण में आता है, उसे मृत्यु भी नहीं छू सकती।”

शिव ने मार्कंडेय को दीर्घायु (चिरंजीवी) बना दिया और यमराज को चेतावनी दी कि धर्म से परे किसी को न लें।


कथा का सार

  • मार्कंडेय शिव भक्ति का प्रतीक बन गए और उन्हें अमरत्व प्राप्त हुआ।
  • यह कथा बताती है कि सच्ची भक्ति, निर्भयता और साधना से मृत्यु को भी हराया जा सकता है।

·         निष्कर्ष

·         मृत्यु को अगर हम अंत मानें, तो डर लगता है।
लेकिन अगर हम उसे एक बदलाव, एक नई शुरुआत, या एक यात्रा का पड़ाव मानें — तो इसमें भी सौंदर्य है, शांति है।

·         हमारे ग्रंथ, पुराण, संत, और यहां तक कि विज्ञान के कुछ विचार भी अब यही कह रहे हैं —
"
मृत्यु एक भ्रम है, आत्मा की यात्रा नहीं रुकती।"

 

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