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इसका मतलब क्या है?
बच्चों, ये विचार हमें सिखाता है कि कुछ चीजें हमारे हाथ में नहीं
होतीं। जैसे, तुम चाहो कि आज धूप निकले, लेकिन बारिश हो जाए। इसका मतलब ये नहीं कि तुम कुछ नहीं कर
सकते। इसका मतलब है कि कुछ चीजें पहले से तय होती हैं, और हमें उन्हें स्वीकार करना चाहिए। लेकिन इसका ये मतलब
बिल्कुल नहीं कि हमें कोशिश करना छोड़ देना चाहिए! यह विचार हमें यह समझाता है कि कुछ
चीजें हमारे नियंत्रण में नहीं होतीं। जब हम पूरी कोशिश करते हैं और फिर भी कुछ
नहीं बदल पाता, तो हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि जो
होना था, वह हुआ। इस विचार का मतलब यह नहीं है कि
हमें कोशिश करनी छोड़ देनी चाहिए, बल्कि इसका मतलब
यह है कि हम उस परिणाम को शांति और समझ से स्वीकार करें।
कहानी:
विक्रम एक क्रिकेट
खिलाड़ी था और उसने अपने जीवन में क्रिकेट को अपना सब कुछ बना लिया था। एक दिन, वह एक महत्वपूर्ण मैच खेल रहा था। उसने पूरी मेहनत की, लेकिन आखिरी ओवर में उसकी टीम हार गई। वह बहुत निराश हुआ और
अपने आप को दोष देने लगा। उसकी दादी ने उसे समझाया, "विक्रम, जो होना था, वही हुआ। तुमने अपनी पूरी मेहनत की थी, और यही सबसे बड़ी बात है।" विक्रम को यह समझ में आया
कि कभी-कभी परिणाम हमारे हाथ में नहीं होते, लेकिन प्रयास और ईमानदारी सबसे महत्वपूर्ण है।
उदाहरण
मान लो, तुमने स्कूल की रेस के लिए बहुत मेहनत की, लेकिन तुम पहले नहीं आ पाए। शायद वो दिन तुम्हारा नहीं था, लेकिन तुम्हारी मेहनत ने तुम्हें और मजबूत बनाया। अगली बार तुम और बेहतर करोगे!
असल जिंदगी का उदाहरण
मेरे चचेरे भाई, अजय, को क्रिकेट खेलना बहुत पसंद था। वो
स्कूल की क्रिकेट टीम में चुने जाने के लिए बहुत उत्साहित था। उसने दिन-रात
प्रैक्टिस की, लेकिन जब ट्रायल्स हुए, तो उसका नाम लिस्ट में नहीं था। वो बहुत निराश हुआ। लेकिन
उसने हार नहीं मानी। उसने और मेहनत की और अगले साल न सिर्फ स्कूल की टीम में जगह
बनाई, बल्कि जिला स्तर पर भी खेला। बाद में
उसने कहा, "शायद उस साल मेरा चुना न जाना ही ठीक था, क्योंकि उसने मुझे और मेहनत करना सिखाया।"
कहानी: "नन्हा बीज"
एक जंगल में एक
नन्हा बीज था। वो बड़ा होकर एक विशाल पेड़ बनना चाहता था। उसने सोचा, "मैं यहाँ धूप में बड़ा होऊँगा।" लेकिन एक दिन एक पक्षी
उसे उठाकर दूर एक नदी के किनारे छोड़ गया। नन्हा बीज उदास हो गया। उसने कहा, "यहाँ तो सिर्फ मिट्टी और पानी है, मैं कैसे बड़ा होऊँगा?"
लेकिन समय के साथ, उस बीज को पता चला कि नदी का पानी और मिट्टी उसके लिए सबसे
अच्छे थे। धीरे-धीरे वो एक मजबूत पेड़ बन गया। जंगल के जानवर उसकी छाया में आराम
करने लगे, और पक्षी उसके डालों पर घोंसले बनाने
लगे। नन्हा बीज, जो अब एक बड़ा पेड़ था, समझ गया कि उसे जहाँ ले जाया गया, वो उसके लिए सबसे अच्छी जगह थी।
सीख: जो होना था, वही हुआ। लेकिन नन्हे बीज ने मिट्टी और पानी का इस्तेमाल करके खुद को मजबूत
बनाया।
इसका मतलब है कि जीवन में कुछ चीजें
ऐसी होती हैं जिन पर हमारा पूरा नियंत्रण नहीं होता। वो होनी ही होती हैं, चाहे हम कितनी भी कोशिश कर लें।
उदाहरण: मान लो आपने दोस्तों के साथ पिकनिक का प्लान बनाया। आपने खूब तैयारी की, लेकिन ऐन मौके पर ज़ोरों की बारिश आ गई। अब बारिश को रोकना तो आपके हाथ में नहीं है ना? वो तो होनी ही थी।
"नंदिनी की आशा"
नंदिनी एक छोटी सी
लड़की थी, जो एक छोटे से गाँव में अपने माता-पिता
के साथ रहती थी। नंदिनी का सपना था कि वह एक दिन अपने गाँव की सबसे बड़ी गायिका
बने। वह प्रतिदिन घंटों गायन की प्रैक्टिस करती थी और अपने सपने को साकार करने के
लिए जी-जान से मेहनत करती थी। गाँव में सभी लोग उसकी आवाज की तारीफ करते थे और
कहते थे कि एक दिन वह बड़ी गायिका बनेगी।
एक दिन, गाँव में एक बड़ा संगीत प्रतियोगिता हुआ, और नंदिनी ने भी उसमें भाग लिया। उसने अपनी पूरी तैयारी की
थी और उसे पूरा विश्वास था कि वह जीत सकती है। प्रतियोगिता का दिन आया, और नंदिनी ने पूरी मेहनत के साथ अपनी प्रस्तुति दी। लेकिन
जब परिणाम घोषित हुए, तो नंदिनी को यह सुनकर बहुत दुख हुआ कि
वह प्रतियोगिता में जीतने में असफल रही। उसकी आँखों में आँसू थे, और वह सोच रही थी कि उसने इतनी मेहनत की, फिर भी क्यों उसे सफलता नहीं मिली।
नंदिनी घर लौटते
हुए सोच रही थी, "मैंने पूरी कोशिश की थी, फिर भी मुझे क्या मिला?" उसकी माँ ने उसे देखा और उसे समझाया, "बिलकुल बेटी, तुमने अपनी पूरी मेहनत की थी, लेकिन कभी-कभी जो हम चाहते हैं, वह हमें तुरंत नहीं मिलता। जो होना है, वही होता है। और जानो, तुम्हारी मेहनत अभी खत्म नहीं हुई है। यह केवल एक कदम था, और तुम्हारा सपना साकार होने का रास्ता अभी बाकी है।"
नंदिनी को अपनी
माँ की बातों से थोड़ी राहत मिली, लेकिन वह यह समझने
की कोशिश कर रही थी कि "जो होना है, वही होता है" का मतलब क्या है। फिर कुछ महीने बाद, गाँव में एक और बड़ा संगीत प्रतियोगिता हुआ। इस बार नंदिनी
ने पहले से भी ज्यादा मेहनत की और अपनी प्रस्तुति को और भी अच्छा बनाया। वह
प्रतियोगिता में पहले स्थान पर आई। नंदिनी का सपना अब सच हो चुका था। उसने अपनी माँ
से कहा, "माँ, अब मुझे समझ में आया कि जो होना था, वही हुआ। मेरी असफलता ने मुझे और भी बेहतर बनाया।"
नैतिक शिक्षा (Moral of the Story)
इस कहानी से हमें
यह सीखने को मिलता है कि जीवन में कोई भी असफलता या कठिनाई एक अवसर होती है। हमें
उसे स्वीकार करना चाहिए और समझना चाहिए कि जो होना है, वही होता है। यह हमें आगे बढ़ने की शक्ति देता है और हमें
अपनी मेहनत को सही दिशा में लगाने की प्रेरणा देता है।
कहानी — "मोती का रास्ता"
यह कहानी एक छोटे गाँव के लड़के "मोती" की है, जो अपने जीवन में कई बदलावों और बाधाओं से गुजरता है। हर बार उसे लगता है कि उसका सपना टूट गया, लेकिन धीरे-धीरे वह समझता है कि जो कुछ हो रहा है, उसके पीछे कोई न कोई कारण है। यह कहानी बच्चों को सिखाएगी कि धैर्य, विश्वास और स्वीकार्यता के साथ जीवन में आगे बढ़ना क्यों ज़रूरी है।
मोती दस साल का एक सीधा-सादा लड़का था। उसका गाँव पहाड़ों की गोद में बसा हुआ था। वह बहुत होशियार था, लेकिन थोड़ा शर्मीला भी। उसका सपना था — एक दिन बड़ा होकर शहर के स्कूल में पढ़ना और डॉक्टर बनना।
गाँव का
छोटा स्कूल सिर्फ पाँचवीं कक्षा तक था। उसके बाद बच्चों को पास के कस्बे में पढ़ने
जाना होता था, जहाँ तक
पहुँचने में रोज़ 5 किलोमीटर
चलना पड़ता।
मोती के
पिता किसान थे और आर्थिक हालात बहुत अच्छे नहीं थे। लेकिन उन्होंने बेटे से वादा
किया था,
"अगर तू पास होगा, तो तुझे कस्बे के स्कूल में ज़रूर भेजेंगे।"
मोती ने
मेहनत की। सुबह उठकर खेत में पिता की मदद करता, फिर स्कूल जाता। शाम को मिट्टी के तेल की लैम्प में पढ़ाई
करता। परीक्षा में उसने अच्छे अंक पाए। पिता ने वादा निभाया और उसे कस्बे के स्कूल
में भर्ती करा दिया।
पहला मोड़ —
स्कूल बदल गया, पर रास्ता नया मिला
मोती नए
स्कूल में पहुंचा तो बहुत घबराया। सब बच्चे अच्छे कपड़े पहनते थे, इंग्लिश में बात करते
थे। उसे लगा वह यहां फिट नहीं होता। पहले हफ्ते तक वह रोज़ रोता।
एक दिन, जब वह उदास बैठा था, उसके विज्ञान अध्यापक
श्री वर्मा ने पास आकर कहा:
"मोती, जानता है ना? मोती एक कीमती रत्न
भी होता है — पर वो समुद्र की गहराइयों में ही मिलता है। तू भी वो मोती है — थोड़ा
गहरा जाएगा, पर
चमकेगा सबसे ज्यादा।"
उस दिन
से मोती ने खुद को बदलने की ठान ली। उसने अंग्रेजी बोलना सीखना शुरू किया, हर विषय में मेहनत
की। धीरे-धीरे, उसने खुद
को साबित करना शुरू कर दिया।
दूसरा मोड़ —
बीमारी और ब्रेक
मोती जब
आठवीं में पहुंचा, एक दिन
तेज़ बुखार आया। डॉक्टर ने कहा — टायफाइड है, दो महीने आराम करना होगा। परीक्षा से सिर्फ 15 दिन बाकी थे। वह टूट
गया।
माँ ने
उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा:
"जो होना है, वही होता है बेटा। तू
रुकेगा नहीं, रास्ता
बदलेगा, मंज़िल
नहीं।"
वह
परीक्षा नहीं दे सका, एक साल
दोबारा आठवीं में पढ़ना पड़ा। दोस्त आगे निकल गए। कुछ लोगों ने मज़ाक उड़ाया।
लेकिन
उसने हार नहीं मानी। अगले साल, उसने जिला स्तर की साइंस प्रतियोगिता जीती।
तीसरा मोड़ —
पिता की मृत्यु
मोती जब
दसवीं में था, उसके
पिता की अचानक तबीयत बिगड़ गई। इलाज के लिए पैसे नहीं थे। उसने गाँव लौटने का
फैसला किया। माँ ने मना किया:
"तेरे पापा तुझे
डॉक्टर बनते देखना चाहते थे। अगर तू वापस आ गया, तो उनकी आत्मा दुखी होगी।"
माँ ने
खेत गिरवी रखे और बेटे को स्कूल भेजा रखा। मोती ने फिर पढ़ाई में जी-जान लगा दी।
समझदारी का क्षण
मोती बारहवीं की परीक्षा में अच्छे अंक लाया।
लेकिन मेडिकल प्रवेश परीक्षा में चयन नहीं हुआ। वह फिर उदास हुआ। पर इस बार उसने
खुद से कहा:
"जो होना था, हो गया। अब नया रास्ता खोजूंगा।"
उसने बीएससी बायोलॉजी में दाखिला लिया। वहाँ
उसे विज्ञान शिक्षक बनने में रुचि आने लगी। उसने सोचा:
"अगर मैं डॉक्टर बनता, तो कुछ लोगों की मदद करता। लेकिन एक शिक्षक बनकर, मैं सैकड़ों भविष्य गढ़ सकता हूँ।"
समाप्ति — मोती की कक्षा
कुछ साल बाद, मोती वही विज्ञान शिक्षक बना, जैसा श्री वर्मा उसके लिए थे। वह गाँव-गाँव घूमकर विज्ञान
और जीवन की बातें बच्चों को सिखाता। जब बच्चे रोते या निराश होते, तो वह कहता:
"सुनो बच्चों, जो होना है, वही होता है — पर
अगर दिल से कुछ चाहो और मेहनत करो, तो जो होना है,
वही तुम्हारे पक्ष में होगा।"

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