बचपन का स्वभाव ही होता है जिज्ञासु होना। बच्चे अक्सर जो देखते हैं, वही करने की कोशिश करते हैं — बिना सोचे, बिना समझे, और बिना पूरी बात सुने। कभी-कभी यह मासूमियत खतरे में बदल जाती है, तो कभी मनोरंजन का कारण बनती है। यह कहानी तीन ऐसे बच्चों की है जो अधूरी बात सुनकर या बड़ों की नकल करके उलझनों में पड़ जाते हैं, लेकिन हर बार सीख लेकर आगे बढ़ते हैं।
यह कहानी है मोनू की — एक 9 साल का चुलबुला, जिज्ञासु और होशियार बच्चा, जो हर बात जल्दी समझने और उससे भी जल्दी करने की कोशिश करता है। लेकिन उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी — वो किसी की बात पूरी सुने बिना ही कुछ भी करने लग जाता। कभी बड़ों की नकल करके, तो कभी अपनी आधी-अधूरी समझ से कुछ ऐसा कर बैठता जो या तो मुसीबत बन जाता या सबको हंसा-हंसा कर लोटपोट कर देता। पर हर घटना के बाद वो कुछ नया सीखता, और यही उसकी कहानी को खास बनाता है।
प्रथम घटना – "हल्दी वाला दूध और दादी का रामबाण नुस्खा"
एक दिन मोनू की दादी को हल्का बुखार हो गया। माँ ने उन्हें गरम दूध में हल्दी डालकर दिया। दादी ने पिया और बोलीं, "वाह! ये हल्दी वाला दूध तो रामबाण है, अब देखना सुबह तक बिलकुल ठीक हो जाऊँगी!"
मोनू पास ही बैठा था। उसने बस इतना सुना — हल्दी वाला दूध = सब कुछ ठीक कर देता है।
अगले दिन जब मोनू स्कूल से लौटा, तो देखा कि उसके पालतू खरगोश गोलू थोड़ा सुस्त लग रहा है। बस! मोनू ने बिना कुछ सोचे दादी की ही तरह एक ग्लास दूध में ढेर सारी हल्दी डाली, और जबरदस्ती गोलू को पिलाने की कोशिश करने लगा।
बेचारा गोलू डर के मारे भागा, और सारा दूध ज़मीन पर फैल गया। माँ ने देखा तो चौंक गईं, “ये क्या कर रहा है मोनू?”
मोनू ने मासूमियत से कहा, “माँ! दादी बोली थी हल्दी वाला दूध सब ठीक कर देता है, तो मैं गोलू को दे रहा था!”
माँ ने हँसते हुए समझाया, “बेटा, इंसान और जानवर की ज़रूरतें अलग होती हैं। और कोई भी बात पूरी सुने बिना अपनाना ठीक नहीं।”
मोनू को पहली बार एहसास हुआ कि अधूरी बात समझना, भले ही इरादा अच्छा हो, नतीजा गलत दे सकता है।
Also Read
द्वितीय घटना – "पापा की शेविंग और मोनू की नकल"
मोनू को अपने पापा की हर सुबह की दिनचर्या बहुत आकर्षक लगती थी — कैसे वे शेविंग करते थे, फेस पर झाग लगाते थे, और बड़े मज़े से रेज़र चलाते थे। एक दिन पापा कह रहे थे, “रेज़र बहुत धारदार होता है, बच्चों को कभी हाथ नहीं लगाना चाहिए।”
मोनू को बस पहली बात सुनाई दी — रेज़र बहुत मज़ेदार होता है। और उसने ठान लिया कि वह भी ‘पापा की तरह मर्दाना’ दिखेगा।
एक दोपहर, जब पापा ऑफिस और माँ बाजार गई थीं, मोनू ने बाथरूम में जाकर शेविंग किट निकाली, झाग लगाया और रेज़र चलाना शुरू कर दिया। लेकिन जैसे ही उसने गाल पर चलाया, खरोंच लग गई और खून निकल आया।
चीख सुनकर बुआ दौड़ी आईं और फर्स्ट ऐड की। बाद में जब माँ आईं, तो मोनू की हालत देखकर घबरा गईं। सबने डांटा भी, लेकिन दादी ने प्यार से पूछा, “तूने ऐसा क्यों किया बेटा?”
मोनू बोला, “पापा करते हैं, तो मैं भी करना चाहता था...”
दादी ने गले लगाते हुए कहा, “हर चीज़ की उम्र होती है, और हर काम को सही समय और समझ से करना ज़रूरी है।”
मोनू को दूसरी सीख मिली — सिर्फ देखकर नकल करने से पहले सोचना चाहिए कि क्या वो काम उसके लिए सही है या नहीं।
तृतीय घटना – "अधूरी सुनवाई, पूरी गड़बड़"
स्कूल में एक दिन शिक्षक ने घोषणा की — “कल सभी बच्चों को पौधारोपण करना है। स्कूल से गमले दिए जाएंगे, आप सबको एक छोटा सा पौधा घर से लाना है।”
मोनू ने दोस्तों के बीच स्मार्ट दिखने के लिए कहा, “मैं तो सबसे अनोखा पौधा लाऊँगा!”
रात को जब माँ सब्ज़ी काट रही थीं, तो उन्होंने मेथी की गड्डी निकाली। मोनू ने देखा — ये तो हरी-हरी, सुंदर पत्तियाँ हैं। बस, उसने चुपचाप मेथी की जड़ें निकालकर मिट्टी में गाड़ दीं।
अगली सुबह, वो पूरे गर्व के साथ स्कूल पहुँचा। लेकिन जब बच्चों के पौधों में गुलाब, तुलसी, मनीप्लांट थे, और उसके गमले में अधकटी मेथी की जड़ें — तो सब हँसने लगे।
टीचर ने पूछा, “ये क्या है मोनू?”
मोनू बोला, “मेथी का पौधा, हरा भी है, काम का भी!”
टीचर मुस्कराए, “सही बात है, लेकिन पौधा लाने का मतलब है ज़िंदा, जड़ वाला और पनपने लायक — काटा हुआ नहीं। बात पूरी सुननी चाहिए थी न?”
मोनू थोड़ा शर्मिंदा हुआ, लेकिन उसने मन ही मन सोचा — अब से हर बात ध्यान से और पूरी सुनूँगा।
परिणाम – मोनू की समझदारी
इन घटनाओं के बाद मोनू बहुत बदल गया। अब वह हर बात पूरी सुनता, सवाल करता, और समझने के बाद ही कुछ करता। दादी उसे प्यार से ‘समझदार मोनू’ कहने लगीं।
स्कूल में जब नए बच्चे किसी बात पर जल्दीबाज़ी करते, तो मोनू उन्हें टोकता — “पहले बात सुनो पूरी, फिर समझो, फिर ही करो!”
पहला प्रसंग: 'नींबू और बुखार'
कहानी की शुरुआत होती है एक छोटे से गाँव में रहने वाले सात वर्षीय बच्चा चिंटू से। चिंटू का स्वभाव था हर बात को जल्दी करना — टीचर कुछ कहें और वह आधे में ही दौड़ पड़े करने।
एक दिन स्कूल में अध्यापक ने स्वास्थ्य पर एक पाठ पढ़ाया। उन्होंने कहा, "बुखार हो तो नींबू पानी पीना अच्छा होता है क्योंकि यह शरीर को ठंडक देता है, लेकिन डॉक्टर से सलाह ज़रूर लेनी चाहिए।"
बस! चिंटू के दिमाग में बस गया — "नींबू पानी = बुखार की दवा।"
अगले ही हफ्ते, उसके बड़े भाई को बुखार हो गया। चिंटू ने किसी को कुछ बताए बिना नींबू काटा, पानी में डाला और भाई को ज़बरदस्ती पिला दिया। पानी में ना नमक था, ना चीनी — बस खट्टी तरल।
भाई की तबीयत और बिगड़ गई। डॉक्टर को बुलाना पड़ा। जब सबने वजह पूछी, तो चिंटू ने मासूमियत से कहा, “नींबू पानी से बुखार ठीक होता है!”
डॉक्टर मुस्कराए, “बिलकुल, लेकिन सही मात्रा और तरीके से — और पहले डॉक्टर से पूछना चाहिए।”
उस दिन चिंटू ने सीखा कि अधूरी जानकारी से अच्छा इलाज नहीं, उलटा नुकसान हो सकता है।
दूसरा प्रसंग: 'दादी के चश्मे का चमत्कार'
गुड़िया नौ साल की होशियार लड़की थी, परंतु थोड़ी चंचल भी। एक दिन उसने देखा कि उसकी दादी चश्मा लगाकर रामायण पढ़ती हैं। फिर, दादी भगवान की मूर्ति के आगे बैठकर मंत्र पढ़ती हैं और कहती हैं, “चश्मा लगाते ही सब साफ-साफ दिखता है — शब्द भी और भगवान भी।”
गुड़िया को लगा कि चश्मा पहनने से भगवान दिखाई देते हैं।
अगले दिन जब घर पर कोई नहीं था, गुड़िया ने दादी का चश्मा पहना और मंदिर के सामने बैठ गई। आँखें गड़ा दीं — अब भगवान “सामने प्रकट” होंगे।
आधा घंटा बीत गया, कुछ नहीं हुआ। फिर, गुड़िया ने एक दिया जलाया — जिससे पर्दा जल गया। गनीमत रही कि पड़ोसन ने धुआँ देखा और समय रहते सब बच गया।
माँ ने डांटते हुए पूछा, “क्यों किया ये सब?”
गुड़िया बोली, “दादी बोली थीं चश्मा लगाओ तो भगवान दिखते हैं।”
माँ ने समझाया, “चश्मा आँखों के लिए होता है, भगवान दिल से देखे जाते हैं। सबकुछ वैसे नहीं होता जैसा दिखता है — समझना भी ज़रूरी होता है।”
गुड़िया की आँखें भर आईं, पर अब समझ आ गया था — नकल करने से पहले मंशा और मर्म जानना ज़रूरी होता है।
तीसरा प्रसंग: 'नमक से बर्तन चमकाओ'
तीसरी कहानी है राजू की — एक दस साल का लड़का, जो हर समय टीवी देखता था। एक दिन एक विज्ञापन में देखा — “नमक से बर्तन चमकते हैं!”
राजू को ध्यान आया कि माँ कई बार कहती हैं, "बर्तन चमक नहीं रहे।" बस फिर क्या था — बिना कुछ पूछे, उसने एक दिन पूरा डब्बा नमक निकालकर बर्तनों पर मलना शुरू किया।
पतीले खुरच गए, चमचों की चमक चली गई और फ्रिज के ऊपर नमक की एक परत सी बन गई। माँ जैसे ही रसोई में आईं, तो चीख निकली।
"ये क्या कर दिया?"
राजू बोला, “माँ! टीवी में देखा था, नमक से बर्तन चमकते हैं!”
माँ ने प्यार से उसका माथा चूमा और कहा, “बेटा, हर बात टीवी में देखी सही नहीं होती — और जो भी करो, बड़ों से पूछ लिया करो। कभी-कभी नीयत अच्छी होती है, पर तरीका गलत।”
राजू को अब समझ आया कि सीख और जानकारी, दोनों पूरी होनी चाहिए।
कहानी से शिक्षा:
-
अधूरी जानकारी से इरादा चाहे अच्छा हो, परिणाम गलत हो सकता है।
-
बड़ों की नकल करने से पहले उनकी उम्र, अनुभव और स्थिति को समझना जरूरी है।
-
हर काम के लिए सही समय, सही तरीका और सही समझ जरूरी है।
-
गलती करने से बड़ी बात है, उससे सीखना और सुधारना।
-
बात पूरी सुनना, समझना और सोचकर करना ही सच्ची समझदारी है।
: