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मदद Help

 


मदद करना हमेशा कोई ‘काम का सौदा’ नहीं होता, फिर भी वह जरूरी होता है।


दसवीं कक्षा का छात्र विवेक पढ़ाई में अच्छा था, लेकिन उतना होशियार नहीं जितना कि चालाक बच्चे बन जाते हैं। उसकी सबसे खास बात थी — उसका साफ दिल और मदद करने की आदत

क्लास में अगर कोई पेन भूल जाए, विवेक अपना एक्स्ट्रा पेन दे देता। कोई होमवर्क भूल जाए, तो वो उसे जल्दी दिखा देता (चाहे मास्टर जी ने मना किया हो)। यहां तक कि अगर कोई दोस्त गलती से उसका टिफिन गिरा दे, तो भी वो नाराज़ नहीं होता।

एक दिन उसके दोस्त रोहित ने उससे कहा,
तू हर किसी की मदद करता है, लेकिन कोई तेरा क्या करता है?”

विवेक हंसते हुए बोला,
मुझे नहीं चाहिए किसी से कुछ। बस अच्छा लगता है जब कोई मुस्कराता है।”

लेकिन यह मासूम आदत धीरे-धीरे उसके लिए मुसीबत बनने लगी…


स्कूल में एक बार मनीष नाम के लड़के ने कॉपी नहीं लाई। मास्टर जी ने सख्त चेतावनी दी थी कि बिना कॉपी के बच्चा क्लास से बाहर किया जाएगा। मनीष ने विवेक से उसकी एक्स्ट्रा कॉपी मांगी, जो उसने नोट्स के लिए रखी थी।

विवेक ने दे दी।

मास्टर जी आए, दोनों की कॉपी देखी… और बोले,
यह दोनों की हैंडराइटिंग तो एक जैसी है! तुम दोनों कॉपी शेयर कर रहे हो?”

मनीष चुप। विवेक ने सच्चाई बताई।
सर, उसने मांगी थी, मैंने दी।”

मास्टर जी बोले,
तो तुम नियम तोड़ने में मदद कर रहे थे! जाओ, दोनों क्लास से बाहर निकलो।”

विवेक को बहुत बुरा लगा। उसके माता-पिता को शिकायत तक भेजी गई।


घर पर विवेक चुपचाप बैठा था। उसकी मां ने पूछा,

क्या हुआ बेटा?”

मां, मैं सोचता था कि अच्छा करना सही है… लेकिन लगता है इससे मुश्किलें ही आती हैं।”

मां मुस्कराईं। बोलीं,
अच्छे लोग हमेशा पहली नज़र में मूर्ख लगते हैं। लेकिन समय के साथ सब समझते हैं कि असली ताकत करुणा में होती है।”

विवेक को बात थोड़ी समझ में आई, लेकिन मन में झिझक आ गई थी।


विवेक अब पहले जैसा नहीं रहा। जब भी कोई उससे मदद माँगता, वह थोड़ी देर सोचने लगता — “कहीं मेरी वजह से मुझे ही परेशानी तो नहीं होगी?”

एक दिन स्कूल से लौटते हुए उसने देखा कि सड़क के किनारे एक बुज़ुर्ग दादी खड़ी थीं। वह सड़क पार करना चाहती थीं, लेकिन तेज़ ट्रैफिक की वजह से डर रही थीं। कई लोग पास से गुज़रे, लेकिन किसी ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया।

विवेक ने उन्हें देखा… और फिर खुद से कहा,
क्या पता अगर मैंने मदद की और कुछ उल्टा-पुल्टा हो गया, जैसे पहले हुआ था? लोग फिर मुझे ही दोष देंगे…”

उसने सिर झुकाया और चुपचाप आगे बढ़ गया।

कुछ कदम चलने के बाद, उसने पीछे मुड़कर देखा — दादी अब भी उसी जगह खड़ी थीं।

उसी समय उसके दोस्त अभय ने पास आकर कहा,
विवेक, तू तो पहले मदद करने में सबसे आगे रहता था। क्या हुआ?”

विवेक चुपचाप रहा।
वो समझ नहीं पा रहा था कि सही क्या हैबिना सोचे मदद करना, या सोच-समझकर चुप रह जाना?

उसी रात, वो सोचता रहा —
अगर मैं सही समय पर मदद कर सकता हूँ, तो क्या डर कर पीछे हटना ठीक है?”

उसके दिल में सवाल उठने लगे। और पहली बार, उसे महसूस हुआ कि कभी-कभी ‘ना मदद करना’ भी एक गलत फैसला हो सकता है।


स्कूल में फाइनल प्रोजेक्ट जमा करवाने की आख़िरी तारीख थी। रिया, जो क्लास में बहुत शांत और शर्मीली थी, अपनी फाइल गिराकर सीढ़ियों से फिसल गई। पेपर फैल गए। सब बच्चे हंसने लगे।

विवेक भी वहीं था। उसने एक पल को हिचकिचाया… फिर आगे बढ़ा।

सब देख रहे थे।

उसने रिया की फाइल समेटने में मदद की, उसका हाथ पकड़ा, और कहा,
चलो, मैं जमा करवाने साथ चलता हूं।”

रिया की आंखों में आंसू थे, पर वो मुस्कराई।


विवेक ने अब सोचना शुरू कर दिया — हर जगह जहां मदद की ज़रूरत होती है, वहां कोई हीरो नहीं जाता, कोई नेता नहीं आता। बस हम जैसे लोग होते हैं।

पार्क में एक बच्चा रो रहा था क्योंकि उसकी गेंद नाली में चली गई थी।
विवेक ने बिना सोचे गेंद निकाल दी।

स्कूल में एक सफाईकर्मी की झाड़ू टूट गई, तो उसने अपने टूल बॉक्स से स्क्रू निकाला और मदद कर दी।

बगल के बुज़ुर्ग अंकल की दवा लाने दुकान चला गया।

इन सबके बदले उसे कोई पुरस्कार नहीं मिला।
पर जो मिला, वो था — संतोष।


बारहवीं की बोर्ड परीक्षाएं थीं। आख़िरी पेपर था — फिजिक्स। सबसे मुश्किल।

विवेक ने बहुत मेहनत की थी।

परीक्षा केंद्र पहुंचा… तो देखा कि रिया रो रही थी। उसका एडमिट कार्ड घर छूट गया था। वो दौड़कर लाई थी, लेकिन अब देर हो चुकी थी। गेट बंद होने ही वाला था।

विवेक ने देखा…
घड़ी देखी…
सोचा…

और फिर अपना स्कूटर रिया को पकड़ाया
जाओ, मैं यहां इंतज़ार करता हूं।”

रिया चौंकी,
पर तुम…?”

तुम अकेली जाओगी तो शायद टाइम पर ना पहुंचो। मैं नहीं चाहता कि तुम एक साल खो दो।”

रिया गई। समय रहते वापस आ गई। दोनों एग्जाम में पहुंचे — थोड़ी देर से — लेकिन गेट अभी खुला था।

पेपर आसान नहीं था। लेकिन दोनों ने पूरा किया।


रिज़ल्ट आया।

रिया को 90% से ज़्यादा अंक मिले। उसे स्कॉलरशिप मिली।

विवेक को 84% मिले — वो थोड़े निराश हुआ। मगर जब रिया उसके घर आई और बोली —

अगर उस दिन तुम न होते, तो मैं यह साल भी गंवा देती। तुम्हारी वजह से ही आज मैं आगे बढ़ रही हूं।”

तो विवेक के चेहरे पर वो मुस्कान लौट आई… वही पुरानी।


कॉलेज में एक बार उसे एक प्रतियोगिता में बुलाया गया — विषय था: "एक ऐसा पल जिसने आपकी सोच बदल दी।"

विवेक ने माइक पर जाकर कहा:

"एक समय था जब मैं दूसरों की मदद करता था बिना सोचे, फिर लोगों के ताने सुनकर रुक गया। लेकिन कुछ अनुभवों ने मुझे सिखाया —

जब हम बिना शर्त किसी की मदद करते हैं, तो हम सिर्फ उनका नहीं, अपना भविष्य भी बेहतर बना रहे होते हैं।

मैं समझ गया हूं कि अच्छा बनना आसान नहीं होता…
पर यह सबसे जरूरी चीज़ होती है।"

पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।


मदद करना अच्छा हैलेकिन कभी-कभी हमें पहले सोच समझकर फैसला लेना चाहिए और अपने फैसले के असर को समझना चाहिए। 

बिना सोचे-समझे मदद करना

विवेक और अभय के बीच अच्छे दोस्ती के कारण, दोनों अक्सर एक-दूसरे के साथ रहते थे। एक दिन, छुट्टी के बाद, दोनों स्कूल से घर लौट रहे थे। रास्ते में एक कुत्ता घायल पड़ा हुआ था, और खून बह रहा था। कुत्ता दर्द से तड़प रहा था।

विवेक ने तुरंत कहा,
हम इसे अस्पताल ले चलते हैं। इसे बहुत दर्द हो रहा है।”

अभय ने ध्यान से देखा और कहा,
तू सही कह रहा है, लेकिन हमें पहले किसी बड़े से बात करनी चाहिए। अगर यह किसी और का कुत्ता है, तो हमें उनका ध्यान रखना चाहिए। और अगर यह हमसे डर रहा हो, तो हमें उसे और अधिक चोट तो नहीं पहुँचानी चाहिए।”

विवेक ने कहा,
मैं तो इसे सही कर दूँगा। मुझे नहीं लगता कि कुछ गलत होगा।” और वह बिना कुछ सोचे कुत्ते के पास गया। कुत्ते ने डरते हुए उसे काट लिया, जिससे विवेक को थोड़ी चोट लगी और उसके हाथ से खून बहने लगा।

अभय दौड़ते हुए उसे खींच लाया और कहा,
तूने बिना सोचे-समझे इसे छुआ, अब देख! अगर तुझे कोई बीमारी हो गई तो? हम बिना किसी को बताये इसे अस्पताल क्यों ले जाते?”

विवेक की आँखों में पछतावा था। उसने कहा,
तुम सही हो। अगर हम किसी बड़े से सलाह लेते तो कम से कम हम इसे सही तरीके से संभाल सकते थे।”

कुछ देर बाद, वे दोनों उस कुत्ते को एक पशु चिकित्सक के पास ले गए, जिन्होंने उसे इलाज दिया। उस दिन विवेक ने सीखा कि कभी-कभी हमारी मदद दूसरों के लिए और भी परेशानी का कारण बन सकती है। सही समय पर बड़े से सलाह लेना हमेशा सही होता है।

बिना सोच समझकर नदी में कूदना

एक दिन स्कूल में बच्चों को खेल के दौरान एक नदी के पास खेलने की छुट्टी मिली। बच्चों के पास बहुत अच्छा मौका था, और सब पानी में कूदने के लिए उत्साहित थे।

अमित, जो थोड़ा बहादुर था, ने बिना सोचे-समझे नदी में छलांग लगा दी। नदी का पानी बहुत गहरा था और उसका बहाव भी तेज़ था। वह तैरने में थोड़ा अटकने लगा, और जब तक बाकी बच्चे समझ पाते, वह पानी में बहने लगा।

रवीना, जो उसके साथ खेल रही थी, डर के मारे चिल्लाई,
अमित, तुमने बिना सोचे क्यूं कूदा? यह पानी बहुत गहरा है!”

फिर उसी समय, उनके स्कूल का शिक्षक वहाँ आ गए। उन्होंने बिना समय गंवाए अमित को बचाया। यदि शिक्षक समय पर न पहुँचते, तो किसी बड़े हादसे का खतरा था।

अमित ने सांस में राहत ली, लेकिन उसके चेहरे पर चिंता भी थी। वह कह रहा था,
अगर मैं थोड़ा और सोचता और किसी बड़े से सलाह लेता, तो शायद मुझे कूदने से पहले अपनी सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए था। मुझे समझ आ गया कि बिना सोचे-समझे कुछ करना न सिर्फ खुद के लिए खतरनाक हो सकता है, बल्कि दूसरों को भी परेशानी में डाल सकता है।”

इस घटना से सभी बच्चों ने सीखा कि कभी भी बिना सोच-विचार के किसी खतरनाक स्थिति में कूदना नहीं चाहिए। पहले अपने आसपास देखना चाहिए और ज़रूरत पड़ने पर बड़े-बुज़ुर्गों से मदद लेनी चाहिए।


बिना सोचे-संभाले रोड क्रॉस करना

एक दिन, स्कूल के बाद, सोनू और उसके दोस्त सुमित रास्ते से घर लौट रहे थे। रास्ते में एक व्यस्त सड़क थी, और ट्रैफिक बहुत तेज़ था। सोनू ने सोचा, “अगर मैं जल्दी से सड़क पार कर लूंगा, तो मुझे घर जाने में देर नहीं होगी।”

वह बिना देखे सड़क पार करने के लिए दौड़ पड़ा। सुमित ने चिल्लाते हुए कहा,
सोनू! रुक! यह ट्रैफिक बहुत तेज़ है! हम सड़क पार करने से पहले सिग्नल का इंतजार करें।”

लेकिन सोनू ने उसकी बात नहीं मानी और सड़क पार कर ली। अचानक, एक बाइक तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ी। किसी तरह बाइक साइड में झुकते हुए रुक गई, और सोनू बाल-बाल बचा।

सुमित डर के मारे कांपते हुए बोला,
तुमने बिना सोच-समझे ऐसा क्यों किया? अगर बाइक का संतुलन बिगड़ जाता तो तुम दोनों को भी चोट लग सकती थी!”

सोनू डरते हुए कहने लगा,
तुम ठीक कह रहे हो सुमित। अगर मैंने पहले तुम्हारी बात मानी होती और एक बार सिग्नल का इंतजार किया होता, तो यह हादसा टल सकता था। मुझे अब समझ में आया कि जब भी हम किसी खतरनाक स्थिति में हों, तो बड़े की सलाह लेना और अपनी सीमा में रहना कितना ज़रूरी है।”


इन घटनाओं से यह साफ़ होता है कि बच्चों को बिना सोचे-समझे मदद करने या किसी खतरनाक स्थिति में खुद कूदने से बचना चाहिए। कभी-कभी हमें सोचने, सलाह लेने, और हमारी सीमाओं को समझने की ज़रूरत होती है। मदद करना अच्छा है, लेकिन सही समय और सही तरीके से करना ज़रूरी है।


 निष्कर्ष (Message for Children):

  • अच्छा बनना आसान नहीं, लेकिन जरूरी होता है।
  • मदद हमेशा कोई इनाम पाने के लिए नहीं की जाती, बल्कि इसलिए कि यह सही है।
  • इंसान का सबसे बड़ा गुण उसका साफ दिल और दूसरों के लिए सोचने की ताकत होता है।
  • जब हम दूसरों के काम आते हैं, तो कहीं ना कहीं, किसी मोड़ पर ज़िंदगी हमारी मदद वापस लौटाती है।
  • मदद करना अच्छा हैलेकिन कभी-कभी हमें पहले सोच समझकर फैसला लेना चाहिए और अपने फैसले के असर को समझना चाहिए। 

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