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बेटियों की अपनी पसंद से
शादी करना आज के समय में एक सामान्य और संवेदनशील मुद्दा बन गया है। यह विषय जितना
व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों से जुड़ा है, उतना ही पारिवारिक, सामाजिक और नैतिक मूल्यों से भी जुड़ा हुआ है। आज जब बेटियाँ आत्मनिर्भर
हो रही हैं, उन्हें अपने जीवन के फैसले खुद लेने की
इच्छा होती है, जो एक सकारात्मक संकेत है। लेकिन कई बार
यह फैसले जल्दबाज़ी में, बिना अनुभव या गलत प्रभावों के
चलते लिए जाते हैं, जिनका असर पूरे जीवन पर पड़ सकता
है।
समस्या की जड़ यह है कि कई बार बेटियाँ किसी ऐसे युवक से विवाह करना
चाहती हैं, जिसकी न तो समाज में कोई प्रतिष्ठा होती है, न
ही भविष्य को लेकर कोई स्पष्टता। माता-पिता स्वाभाविक रूप से चिंतित हो जाते हैं, क्योंकि वे अपनी संतान के लिए बेहतर जीवन और स्थिरता की कामना करते हैं।
एक समझदार अभिभावक केवल बाहरी दिखावे से नहीं, बल्कि
दीर्घकालीन सुख-दुख, जीवन शैली, विचारों की समानता और जीवन की स्थिरता को भी ध्यान में रखते हैं।
आजकल सोशल मीडिया, फिल्में, और
तात्कालिक आकर्षण युवाओं को प्रभावित कर रहे हैं। बेटियाँ कई बार किसी के दिखावे, मीठी बातों, या झूठे वादों में आ जाती हैं। कई
बार युवकों द्वारा अपने बारे में झूठी जानकारी देना, झूठे
पेशे, आय, या पारिवारिक
स्थिति को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना आम हो गया है। जब तक सच्चाई सामने आती है, तब तक बेटी पूरी तरह मानसिक रूप से उस व्यक्ति के प्रति जुड़ाव महसूस करने
लगती है। इस स्थिति में यदि माता-पिता विरोध करते हैं, तो
बेटी उन्हें अपना दुश्मन समझने लगती है।
कुछ मामलों में मानसिक रूप से प्रभाव डालने की घटनाएँ भी सामने आई
हैं — जिसे आम भाषा में 'ब्रेनवॉश' कहा जाता
है। लड़की को इस तरह समझाया जाता है कि उसके माता-पिता पुराने विचारों के हैं, वे उसे आज़ादी नहीं देना चाहते, या वे खुद
स्वार्थी हैं। इसके अलावा, कुछ मामलों में तथाकथित 'तांत्रिक' उपाय या काले जादू जैसे रास्तों की
भी अफवाहें सामने आई हैं, जो माता-पिता की चिंता को और
बढ़ा देती हैं।
एक उदाहरण हरियाणा के पानीपत जिले का है, जहाँ
एक 20 वर्षीय युवती ने अपने ही कॉलेज के एक युवक
से विवाह करने की ज़िद पकड़ ली। युवक के पास न नौकरी थी, न पढ़ाई में विशेष रुचि, लेकिन सोशल मीडिया पर
वह काफी स्टाइलिश दिखता था। लड़की ने माता-पिता की बात नहीं मानी और घर से चली गई।
दो साल के भीतर उस युवक ने उसे धोखा दिया और वह दूसरी शादी कर बैठा। लड़की टूट चुकी
थी और बाद में अपने माता-पिता के पास लौट आई। उस परिवार को न सिर्फ मानसिक पीड़ा
बल्कि सामाजिक अपमान का सामना भी करना पड़ा।
दूसरा उदाहरण पंजाब के जालंधर का है। एक समझदार परिवार की बेटी ने एक
ऑनलाइन गेमिंग ग्रुप में मिले युवक से जुड़ाव महसूस किया। युवक ने खुद को एनआरआई
बताया, लेकिन
बाद में पता चला कि वह बेरोजगार था और अपने भाई के नाम पर बात कर रहा था। लड़की ने
माता-पिता के विरोध के बावजूद उससे विवाह कर लिया। विवाह के बाद अत्याचार और
आर्थिक शोषण शुरू हो गया। मामले ने कानूनी मोड़ लिया, लेकिन
मानसिक आघात स्थायी हो गया।
ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ बेटियाँ अपनी पसंद से विवाह करने के बाद
जीवनभर पछताती हैं। ज़रूरी यह है कि बेटियाँ यह समझें कि माता-पिता का विरोध उनका
दुश्मनी नहीं, बल्कि उनका अनुभव और सच्चा प्यार है। जीवनसाथी चुनना केवल दिल का नहीं, दिमाग का भी निर्णय होना चाहिए। प्रेम महत्वपूर्ण है, परंतु उसमें विवेक, भविष्य की योजना, पारिवारिक संस्कृति और जीवन के मूल्यों का ध्यान होना भी आवश्यक है।
माता-पिता को भी ज़रूरत है कि वे संवाद बनाए रखें, बेटियों
को डाँटने या धमकाने के बजाय उनकी बात सुनें, तर्कों से
समझाएँ। बेटियों को भी यह समझना चाहिए कि माता-पिता उनकी भलाई के लिए ही चिंता
करते हैं, और उनका अनुभव जीवन की राहों में अमूल्य
साबित हो सकता है।
समाज में इस विषय पर खुले संवाद की आवश्यकता है — स्कूलों, कॉलेजों, और परिवारों में — ताकि युवा अपने फैसलों में भावनात्मक न होकर विवेकपूर्ण
बनें। साथ ही, ऐसे मामलों में यदि कोई संदेहास्पद
स्थिति दिखाई दे, तो पेशेवर काउंसलिंग लेना भी एक बेहतर
विकल्प हो सकता है।
बेटियों का अपने जीवनसाथी चुनने का अधिकार पूर्णतः सम्मानजनक है, लेकिन
सही जानकारी, अनुभव, और
पारिवारिक सहयोग के साथ ही यह फैसला उनके लिए सुखद साबित हो सकता है। अन्यथा, यह एक ऐसा मोड़ बन सकता है जिससे पूरे जीवन की दिशा प्रभावित हो जाती है।
भावनात्मक निष्कर्ष:
हर बेटी अपने पिता की आँखों का तारा होती है, माँ
के जीवन की सबसे मधुर उम्मीद होती है। जब वह कोई ऐसा निर्णय लेती है जिससे उसका
जीवन ही नहीं, उसके माता-पिता की भावनाएँ और विश्वास भी
टूट जाते हैं, तो यह केवल एक व्यक्ति का नहीं, पूरे परिवार का संकट बन जाता है। माँ-बाप जो अपने बच्चों के लिए रातों की
नींद, जीवन की खुशियाँ और सपनों की बलि देते हैं, वे कभी भी अपनी संतान का बुरा नहीं सोच सकते।
विवाह केवल दो लोगों का संबंध नहीं होता, यह
दो परिवारों का मिलन होता है, और इसका प्रभाव जीवनभर
रहता है। बेटियों को चाहिए कि वे अपने माता-पिता की बात को अवश्य सुनें, खुले मन से विचार करें, और जल्दबाज़ी या बाहरी
प्रभाव में आकर ऐसा निर्णय न लें जो बाद में अश्रु और पछतावे का कारण बने।
माता-पिता को भी चाहिए कि वे अपनी बेटियों को भरोसे का माहौल दें, ताकि वे अपनी हर बात बिना डर के साझा कर सकें। जब दोनों पक्षों में संवाद और विश्वास होगा, तभी सही निर्णय संभव होगा। अंततः, यही सच्ची जीत है — जब बेटी को अपने जीवनसाथी के साथ-साथ अपने माता-पिता का आशीर्वाद भी मिले, और जीवन प्रेम, समझदारी व संतुलन के साथ आगे बढ़े।
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