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ज़िंदगी का सफर हमेशा हमें बहुत कुछ सिखाता है। इसमें कई लोग मिलते हैं, कई रिश्ते बनते हैं, और कई यादें हमारे साथ रह जाती हैं। लेकिन हर रिश्ता, हर साथी हमेशा के लिए हमारे साथ नहीं रहता। कुछ बंधन ऐसे होते हैं जो चाहे कितने गहरे क्यों न हों, वक्त की मजबूरी से टूट जाते हैं और हमें अंदर तक अधूरा छोड़ जाते हैं। ऐसे रिश्तों की कमी, उनका खालीपन, कभी नहीं भरता। यही इंसान की सबसे बड़ी कसक होती है। मेरे जीवन में भी एक ऐसा ही रिश्ता था—मेरी गली में आने वाली एक बिल्ली से, जो मेरे लिए सिर्फ एक जानवर नहीं थी, बल्कि मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन गई थी।
मुझे याद है वह दिन जब पहली बार वह बिल्ली मेरे दरवाज़े पर आई थी। न जाने कहाँ से चली आई थी, लेकिन जैसे उसके दिल ने उसे मेरे घर तक पहुँचा दिया। वह चुपचाप दरवाज़े के बाहर बैठ गई, मानो मुझे परख रही हो कि क्या मैं उसे अपनाऊँगा। उसकी आँखों में एक अजीब सी मासूमियत थी, एक झिझक भी, जैसे उसे डर हो कि कहीं कोई उसे भगा न दे। मैं बाहर आया और उसने धीरे-धीरे नज़रें उठाकर मेरी तरफ देखा। उस नज़र में ऐसा अपनापन था, जैसे वह कहना चाह रही हो कि “क्या मैं यहाँ थोड़ी देर रुक सकती हूँ?” मैंने तुरंत उसे थोड़ा खाना दिया। वह बहुत धीरे-धीरे खाने लगी, जैसे आभार व्यक्त कर रही हो कि उसे अपनाया गया। उस दिन का वह छोटा सा लम्हा मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन गया।
धीरे-धीरे यह उसका रोज़ का सिलसिला बन गया। वह हर दिन मेरे घर आती। कभी थोड़ी देर बैठती, कभी घंटों वहीं रुकी रहती। जब मैं काम में व्यस्त होता, तो वह चुपचाप दरवाज़े के पास बैठ जाती, मानो मुझे साथ देने आई हो। कभी-कभी जब मैं बाहर निकलता, तो वह मेरे पैरों से रगड़ खाती, जैसे अपना सारा प्यार मुझे सौंप रही हो। उसकी यह आदत मुझे अंदर तक छू जाती थी।
कभी-कभी वह गोद में आकर बैठ जाती। उसका छोटा सा शरीर, उसका मासूम चेहरा और वह गहरी, सच्ची आँखें—उन सबमें एक अलग ही सुकून था। लगता था जैसे वह दुनिया की सारी थकान और सारी चिंताओं को दूर कर देती हो। जब वह मेरी गोद में बैठकर आँखें बंद कर लेती, तो लगता था मानो समय थम गया हो। ऐसे पलों में एहसास होता था कि खुशी वास्तव में छोटी-छोटी चीज़ों में छिपी होती है।
उसकी अपनी आदतें थीं। उसे दूध बहुत पसंद था, और जब भी कटोरी रखी जाती, तो वह धीरे-धीरे जीभ से चाटती रहती। खाना खाते समय भी उसमें एक अजीब सी शालीनता थी—ना कोई लालच, ना कोई जल्दी। वह जितना ज़रूरत होती, उतना ही खाती। कभी-कभी वह खेलने के मूड में होती और इधर-उधर उछलने लगती। मुझे देखकर दौड़ती हुई पास आ जाती और कभी अचानक मेरे पैरों पर पंजा मारकर भाग जाती। उसकी ये शरारतें मुझे बच्चे जैसी लगतीं।
धीरे-धीरे दो साल बीत गए। अब उसका आना-जाना मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका था। मैं जब घर आता, तो सबसे पहले दरवाज़े की तरफ देखता कि वह आई है या नहीं। अगर आती, तो दिन पूरा हो जाता। अगर कभी नहीं आती, तो एक अजीब सी कमी महसूस होती। यह रिश्ता अब दिल से बंध चुका था। वह जानवर होकर भी मुझसे इतना जुड़ गई थी कि उसका होना मेरे लिए ज़रूरी हो गया था।
लेकिन ज़िंदगी हमेशा वैसी नहीं रहती जैसी हम चाहते हैं। वक्त ने एक मोड़ लिया और मुझे अपना घर बदलना पड़ा। नए मकान में जाना ज़रूरी था। सामान बाँधा जा रहा था, और वह बिल्ली हर दिन आती और सब देखती। उसकी आँखों में एक अजीब सी बेचैनी झलकने लगी थी, जैसे उसे समझ आ गया हो कि कुछ बदलने वाला है। मैं जब भी उसे देखता, मेरा दिल भारी हो जाता। मन कहता था कि उसे साथ ले चलूँ, लेकिन दिमाग बार-बार याद दिलाता था कि यह उसकी दुनिया है। उसकी गली, उसका इलाका, उसके पेड़, उसके खुले आसमान—यह सब उसका है। अगर मैं उसे साथ ले भी जाऊँ, तो शायद वह खुश न रह पाए।
वह फैसला लेना मेरे लिए बेहद कठिन था। एक तरफ उससे बिछड़ने का दर्द था, दूसरी तरफ उसकी आज़ादी और उसकी दुनिया का ख्याल। आखिरकार भारी मन से मैंने उसे वहीं छोड़ने का फैसला किया। उस दिन जब आखिरी बार मैंने दरवाज़ा बंद किया, तो लगा जैसे अपने दिल का एक हिस्सा बाहर छोड़ आया हूँ। उसकी आँखें अब भी मुझे देख रही थीं। उनमें एक सवाल था—“तुम मुझे छोड़कर जा रहे हो?” और मैं उस सवाल का कोई जवाब नहीं दे पाया।
अब मैं अपने नए घर में हूँ। यहाँ सब कुछ नया है, पर एक आदत अब भी वही है। जब भी मैं गेट बंद करता हूँ, तो पहले एक नज़र बाहर डालता हूँ। दिल में एक असंभव सी उम्मीद जागती है—शायद वह यहाँ आ गई हो, शायद किसी चमत्कार से वह मेरा पीछा करते हुए इस नए घर तक पहुँच गई हो और अब दरवाज़े पर बैठी मेरा इंतज़ार कर रही हो। मुझे पता है कि यह कभी नहीं हो सकता, लेकिन फिर भी आँखें हर बार उसे तलाशती हैं। और जब वहाँ कोई नहीं होता, तो दिल के अंदर एक खालीपन और गहरा हो जाता है।
कभी-कभी सोचता हूँ, वह अब कहाँ होगी। क्या अब भी पुराने घर की गली में आती होगी? क्या किसी और ने उसे अपनाया होगा? क्या वह खुश होगी? यह सोचकर थोड़ी तसल्ली मिलती है कि शायद उसने किसी और से वही अपनापन पा लिया होगा, लेकिन तुरंत ही दर्द उठता है कि अब वह अपनापन मेरे साथ नहीं है।
उसकी यादें आज भी मेरे साथ हैं। जब वह मेरी गोद में सिमटकर बैठ जाती थी, जब धीरे-धीरे खाना खाती थी, जब मेरी तरफ मासूमियत से देखती थी—ये सब पल अब सिर्फ यादों में रह गए हैं। लेकिन ये यादें इतनी गहरी हैं कि कभी-कभी लगता है वह यहीं है, बस थोड़ी दूर छुपी हुई। यही उसकी सबसे बड़ी निशानी है—वह मेरे दिल में हमेशा ज़िंदा है।
ज़िंदगी ने मुझे यह सिखाया कि हर रिश्ता बहुत कीमती होता है। हमें उसे पूरी तरह जी लेना चाहिए, क्योंकि एक बार जो खो जाता है, वह फिर कभी नहीं लौटता। वह बिल्ली मेरे जीवन में आई, उसने मुझे अपनापन दिया, और फिर चली गई। लेकिन उसने जो सिखाया, वह हमेशा मेरे साथ रहेगा—प्यार बिना किसी शर्त के भी हो सकता है, और हर रिश्ता दिल से निभाया जा सकता है।
आज भी जब मैं रात को गेट बंद करता हूँ, तो मेरी आँखें उसे ढूँढती हैं। मुझे मालूम है कि वह यहाँ कभी नहीं आएगी, लेकिन यह छोटी सी उम्मीद मेरे दिल को जिंदा रखती है। शायद यही उम्मीद इंसान को आगे बढ़ने की ताकत देती है। यह रिश्ता अधूरा रह गया, लेकिन उसकी यादें मेरे जीवन को हमेशा पूरा करती रहेंगी।
यह लेख सिर्फ मेरी उस बिल्ली की याद नहीं है, बल्कि उन सभी रिश्तों की कहानी है जो हमारी ज़िंदगी में आते हैं, हमें संवारते हैं, और फिर हमें अधूरा छोड़कर चले जाते हैं। वे हमें यह सिखाते हैं कि हर पल को जीना चाहिए, हर रिश्ते को संभालना चाहिए, क्योंकि जो गुजर जाता है, वह फिर कभी लौटकर नहीं आता।
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