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भाग 1
एक बार एक बेटा अपने ऑफिस से घर लौट रहा था। रास्ते में उसने एक छोटे बच्चे को अपने पिता से चिपक कर कहते सुना—“पापा, आप सबसे अच्छे हो।” यह सुनकर उसके मन में टीस उठी। उसने सोचा, “मैंने कब अपने पापा से यह कहा था? क्या कभी कहा भी?” घर पहुँचकर उसने देखा कि पापा टीवी के सामने बैठे थे। वह पास गया, मगर जुबान पर शब्द नहीं आए। बस अंदर ही अंदर मन कहता रहा कि “पापा, आप ही मेरी दुनिया हो।” यही वह दुविधा है जो मध्यमवर्गीय परिवारों में बार-बार होती है। प्यार मन में उमड़ता है, मगर झिझक शब्दों को बाँध देती है।
भाग 2
मध्यमवर्गीय परिवारों में त्योहार भी एक खास भूमिका निभाते हैं। दिवाली पर जब पिता नए कपड़े लाकर बच्चों को देते हैं, तो उनके चेहरे की चमक देखना ही उनके लिए सबसे बड़ा तोहफ़ा होता है। मगर बच्चे यही समझते हैं कि यह तो बस रिवाज़ है। पर वास्तव में हर नया कपड़ा पिता के कई अधूरे सपनों की कीमत पर आता है। माँ जब राखी पर भाई के लिए मिठाई बनाती है या होली पर सबको अपने हाथ से गुजिया खिलाती है, तो उसमें छिपा प्यार किसी भी “आई लव यू” से कहीं गहरा होता है। पर सोचने वाली बात यह है कि क्या कभी बच्चों ने माँ से कहा—“माँ, आपके हाथ की मिठाई सबसे मीठी है, और हम आपसे बहुत प्यार करते हैं”? शायद ही कभी।
भाग 3
कभी रात को अपने कमरे में बैठे सोचिए—अगर कल सुबह अचानक सब बदल जाए, अगर घर का कोई अपना हमारे बीच न रहे, तो क्या हम चैन से जी पाएँगे? शायद नहीं। हमें तुरंत ख्याल आएगा कि काश हमने एक बार कहा होता—“आप हमारे लिए सबसे कीमती हो।” यह पछतावा हमें जीते-जी अंदर से तोड़ देता है। इसलिए बेहतर यही है कि हम इन शब्दों को आज ही कह डालें। भले ही शुरुआत में अजीब लगे, भले ही सामने वाला हँसकर टाल दे, मगर दिल में यह शब्द हमेशा गूंजते रहेंगे। जब पिता सुनेंगे कि “पापा, आप हमारे हीरो हैं,” तो उनका मन गर्व से भर जाएगा। जब माँ सुनेंगी कि “माँ, आपसे बढ़कर कोई नहीं,” तो उनका चेहरा खिल उठेगा। और यही छोटे-छोटे क्षण ज़िंदगी की असली पूँजी बन जाते हैं।
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