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करुणा एक ताकत है

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भारत में गाय को माँ का दर्जा दिया जाता है, उसकी पूजा होती है, उसे पवित्र माना जाता है। लेकिन सच्चाई यह है कि इसी पवित्र मानी जाने वाली गाय की हालत सड़कों पर सबसे दयनीय और शर्मनाक दिखाई देती है। यह वह दर्द है जिसे देखने वाला इंसान भीतर तक टूट जाता है। कहीं बुज़ुर्ग गायें अपनी धीमी चल से किसी मोड़ तक पहुँचने की कोशिश करती हैं, कहीं छोटी बछिया डरते-डरते सड़क पार करती है, कहीं कोई दूध न देने वाली गाय कूड़े के ढेर में से सड़ी-गली सब्ज़ियाँ ढूँढ़ती हुई मिलती है। और यह दृश्य किसी भी संवेदनशील इंसान को भीतर से हिला देता है।

सबसे दुखद बात यह है कि जिन लोगों के घरों में इन गायों से दूध निकाला जाता है, वही लोग जब गाय बूढ़ी हो जाती है या दूध देना बंद कर देती है, तो उसे बोझ समझकर सड़क पर छोड़ देते हैं। और यह सब एक समाज में होता है जहाँ गाय को माता कहा जाता है। दिल यहीं टूट जाता है—सम्मान की बातें ज़ुबान पर और व्यवहार में उपेक्षा। यह विरोधाभास किसी भी संवेदनशील इंसान की भावनाओं को झकझोर देता है।

और जब कोई भला इंसान इन बेबस गायों को भोजन देने की कोशिश करता है—कुछ लोग उल्टा उसी को रोक देते हैं। “यहाँ मत खिलाओ, इससे और गायें इकट्ठी होंगी”, “परेशानी बढ़ेगी”, “यह हमारी जिम्मेदारी नहीं”—ऐसे ताने खाने को मिलते हैं। यह सुनकर मन और भी भारी हो जाता है। आखिर क्या एक भूखे जीव को खाना देना भी अपराध है? क्या थोड़ा सा करुणा दिखाना गलत है?

यहाँ सबसे मुश्किल चीज़ भावनाओं को संभालना है। जब आप रोज़ किसी गाय को कूड़े में मुँह डालते देखते हैं, गर्भवती गाय को ट्रैफिक के बीच जान बचाते भागते देखते हैं, किसी घायल गाय को तकलीफ़ में कराहते देखते हैं—तो मन में बेचैनी, गुस्सा, असहायता सब एक साथ उमड़ पड़ता है। दिल करता है कि दौड़कर सब ठीक कर दिया जाए। लेकिन अकेला इंसान पूरा सिस्टम नहीं बदल सकता, और यही सोच मन को और तोड़ देती है।

ऐसे में भावनाओं को दबाना नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें सही दिशा देनी चाहिए। करुणा एक ताकत है—कमज़ोरी नहीं। जिस दिल में दया है, वही बदलाव की नींव बन सकता है। इसलिए सबसे पहले अपने भीतर यह स्वीकार करना जरूरी है कि गाय को सड़क पर छोड़ने की समस्या एक सामाजिक बीमारी है, व्यक्तिगत नहीं। और इसे बदलने के लिए धीरे-धीरे, समझ और धैर्य से काम करना होगा।

अगर आप किसी गाय को खाना देना चाहते हैं और लोग आपको रोकते हैं, तो गुस्से में प्रतिक्रिया न करें। शांतिपूर्वक, विनम्रता से कहें—“भूखे को खिलाना गलत नहीं है, मैं बस उसकी भूख मिटा रहा हूँ।” कई लोग विरोध इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे भीड़ जमा होगी। ऐसे में आप नियमित समय और जगह तय कर सकते हैं, और जितना हो सके सुरक्षित जगह पर खिलाएँ। कई बार धीरे-धीरे लोग खुद समझ जाते हैं कि दया से कोई नुकसान नहीं होता।

अगर किसी क्षेत्र में गायों की भीड़ बढ़ रही है, तो स्थानीय गऊशाला से संपर्क करके वहाँ की गायों की स्थिति पता करें और संभव हो तो उन्हें ले जाने की व्यवस्था करें। गऊशालाओं की हालत भी हर जगह अच्छी नहीं होती, पर कई जगह बेहतर व्यवस्था होती है। आप आसपास के लोगों के साथ मिलकर छोटी-सी फीडिंग टीम भी बना सकते हैं—एक अकेला काम करे तो विरोध होता है, लेकिन चार लोग मिलकर करें तो माहौल बदलने लगता है।

दिल का दर्द कम नहीं होगा, यह सच है—क्योंकि संवेदनशीलता इंसान से छिननी नहीं चाहिए। लेकिन इस दर्द को समाधान में बदलना ही सबसे बड़ा काम है। जहाँ तक आप कर सकते हैं, उतना करें। एक गाय का भोजन, एक गाय का उपचार, एक गाय के लिए पानी—इतना भी किसी जीव के लिए पूरी दुनिया बन सकता है।

और सबसे महत्वपूर्ण बात—अपने आप को दोष न दें। आप वह कर रहे हैं जो आपकी मानवता और आपका दिल कहता है। समाज की सोच धीरे-धीरे बदलती है, और शायद आपकी दया किसी और के मन में भी करुणा जगाए।

यह भरोसा दिल को थोड़ा सुकून देता है कि जब हम किसी बेबस जीव के लिए खड़े होते हैं, तो ब्रह्मांड में कहीं न कहीं उसकी ऊर्जा हमें ताकत देती है। ऐसे ही छोटे-छोटे कदम एक दिन बड़े परिवर्तन की वजह बनते हैं।

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